अपनी जानकारी तथा बुद्धि की क्षमता का प्रयोग
करते हुए शिष्यों में ज्ञान बांटना तथा शिष्यों द्वारा ज्ञान को
ग्रहण करना दोनों क्रियाओं को सयुंक्त रूप से पाठन कहा जाता है। इस क्रिया को आम तौर पर अध्यापन (ज्ञान देना) तथा
अध्ययन (ज्ञान अर्जित करना) शब्द से जाना जाता है। एक अध्यापक द्वारा शिष्यों को पाठ समझाना, सबक याद
करवाना, ज्ञान देना व उनके प्रश्नों का उत्तर देना जो उनके मस्तिष्क की ज्ञान रुपी
प्यास को बुझा सके, पाठन क्रिया में आते हैं तथा एक शिष्य द्वारा
ज्ञान ग्रहण करना, उसका उचित प्रयोग करना, उस ज्ञान का विकास करना इत्यादि भी पाठन
क्रिया के ही हिस्से हैं। पाठन के फलस्वरूप ही संचित ज्ञान का पीढ़ी दर पीढ़ी प्रसार
होता जाता है तथा ज्ञान का सागर बड़ा होता जाता है। पाठन क्रिया के फलस्वरूप ही आज
मनुष्य ने इतना ज्ञान अर्जित कर लिया है कि वह अनेकों असंभव कार्यों को संभव कर
सकने में सक्षम हो चुका है। पाठन लिखित, मौखिक या अन्य किसी भी रूप (जिससे
ज्ञान को बांटा या अर्जित किया जा सकता हो) में हो सकता है। पाठन के प्रयायवाची हैं: अध्यापन तथा अध्ययन। पाठन को अंग्रेजी में टीचिंग (ज्ञान देना) या रीडिंग (ज्ञान अर्जित करना) कहा जाता है।
उदाहरण: मनुष्य ने पाठन का महत्व बहुत ही प्राचीन समय में जान लिया
था। यही कारण रहा कि राजाओं-महाराजाओं के समय में भी पाठन कार्य में कोई कमी नही
आने दी गई तथा शिक्षा देने वाले गुरुजनों को समाज में सबसे ऊँचा दर्जा दिया गया।