घुटने टेकना अर्थात शत्रु
के सामने अपनी हार को स्वीकार करना। किसी भी प्रतिस्पर्धा या युद्ध में जब दो दलों
या व्यक्तियों में से कोई एक आत्म-समर्पण कर दे तब उस आत्म-समपर्ण की क्रिया को
घुटने टेकना कहा जाता है। घुटने अर्थात जांघ तथा टांग के मध्य आने वाला शारीरिक
जोड़ जो टखने से ढका हुआ होता है तथा टेकना अर्थात नीचे जमीन से लगाना जब कोई अपने
घुटनों को जमीन से लगाकर घुटनों के बल बैठ जाए तो इस मुद्रा को सामने वाले के
समक्ष आत्म-समर्पण माना जाता है। यद्दपि किसी धार्मिक स्थल पर इस अवस्था का मतलब
प्रार्थना करना होता है जो यह दर्शाता है कि मनुष्य आलौकिक शक्तियों के समक्ष सदैव
आत्म-समर्पित रहता है।
सरल शब्दों में अपनी हार
स्वीकार कर स्वयं को सामने वाले से पराजित मान लेना ही घुटने टेकना मुहावरे का
अर्थ है। प्रथम उदाहरण: महाभारत के अंत में कौरवों को पांडवों के समक्ष घुटने
टेकने ही पड़े थे। द्वितीय उदाहरण: रमेश को हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान है यही कारण
है कि हिन्दी से सबंधित किसी भी प्रतिस्पर्धा में सामने वाला प्रतिस्पर्धी उसके
हिन्दी ज्ञान के समक्ष अपने घुटने टेक देता है। तृतीय उदाहरण: बदमाशों के टोले ने
बहुत दिनों से शहर में आतंक मचा रखा था अंतत: पुलिस द्वारा की गई छापेमारी में सभी
को घुटने टेकने पड़े। घुटने टेकना को अंग्रेजी में सरेंडर कहा जाता है।
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