एक प्रकार का सिर पर लपेटा
जाने वाला कपड़ा जिसे सम्मान का प्रतीक माना जाता है तथा चौड़ाई की अपेक्षा लम्बाई
में अधिक बड़ा होता है; पगड़ी कहलाता है। इसका लम्बाई-चौड़ाई अनुपात क्रमश 5:1 या
इससे ज्यादा भी हो सकता है। सिक्ख धर्म की मूल पहचान के रूप में जानी जाने वाली
पगड़ी समाज में प्रतिष्ठा का प्रतीक मानी जाती है क्योंकि यह शरीर में सर्वोच्च
स्थान (सिर) पर बाँधी जाती है। पगड़ी का विस्तार सिर से भी ऊपर तक होता है जिससे
व्यक्ति का कद बढ़ा हुआ लगता है। पगड़ी एक पहनावे के रूप में सिर बाँधी जाती है। पगड़ी
का प्रकार इसके बाँधने के तरीके पर निर्भर करता है। जैसे कि निहंग सिक्खों द्वारा
बाँधी जाने वाली पगड़ी का नाम “दुमाला” होता है तथा वर्तमान मे पटियाला शाही जैसी
पगड़ियाँ चलन में हैं। पगड़ी पर बहुत से मुहावरे भी बनाए गए हैं जिनमें इसे प्रतिष्ठा
का प्रतीक माना गया है जैसे: पगड़ी उछालना का अर्थ होता है “बेईज्ज़त करना” तथा पगड़ी
बांधना का अर्थ होता है “उत्तराधिकारी बनाना/ अधिकार देना”; पगड़ी का अर्थ तथा
पर्यायवाची हैं: दस्तार/ साफ़ा/ शिरोधान/ उष्णीस (पंजाबी: पग) (अंग्रेजी: टर्बन)
यद्दपि पगड़ी शब्द उपरोक्त
रूप में प्रसिद्ध है परन्तु इसके कुछ अन्य अर्थ भी हो सकते हैं जैसे: पाग (अर्थात
एक प्रकार का खाद्य पदार्थ जिसे चाशनी में डुबोकर पकाया जाता है) इसके अतिरिक्त जब
कोई दुकानदार किसी दुकान को किराए पर लेने के लिए नजराने के रूप में कुछ रूपए दुकान
के मालिक को देता है जो कि पूर्ण किराए का मामूली हिस्सा होते हैं; को भी पगड़ी नाम
से जाना जाता है।