एक ओंकार (पंजाबी में: इक
ओंकार) सिख धर्म का मूल मंत्र है तथा इसी अद्वितीय चिह्न से सिखों के पवित्र ग्रन्थ
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की शुरुआत होती है। शब्द में परिवर्तित होने के पश्चात
इस पावन चिह्न का अर्थ निकलता है: “अकाल पुरख (परमात्मा) एक है... अर्थात इस संसार
के कण कण की रचना करने वाला ईश्वर एक ही है जो सबसे ऊपर है वोही इस ब्रह्माण्ड की
रचना करने वाला है। उससे बड़ा कोई नहीं है वह हर जगह विद्यमान है वह सर्वोपरी है।
ੴ
एक ओंकार का पावन चिह्न गुरमुखी
लिपि के प्रयोग से बना है तथा गुरमुखी के प्रथम अंक “एक (੧)” व गुरमुखी के प्रथम अक्षर “उढ़ा (ੳ)” के परस्पर मिलन से इसकी
रचना होती है। सिख धर्म में मान्य पंज पौड़ी की शुरुआत भी एक ओंकार से होती है व
सिख धर्म में ईश्वर के समक्ष की जाने वाली प्राथनाओं में यह चिह्न सर्वोपरी है।
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