यह संत कबीर जी का एक बहुत ही प्रचलित दोहा है । जिसमें कबीर जी स्वयं से प्रश्न करते हुए खुद के एक ऐसी स्थिति में होने का अनुभव करते हैं जहाँ उनके गुरु (शिक्षक) तथा गोबिंद (ईश्वर) दोनों उनके समक्ष खड़े हैं। ऐसी स्थिति में कबीर स्वयं को दुविधा में पाते हैं वे ये विचार कर पाने स्वयं को असमर्थ पाते हैं कि यदि गुरु तथा ईश्वर दोनों उनके समक्ष खड़े हो जाएं तो पहले वे किसके चरण स्पर्श करेंगें अर्थात पहले वे किसको सम्मान देंगें।
एक और उनके गुरु हैं जिन्होंने उन्हें सब कुछ सिखाया है तथा शिक्षा दी है व इस संसार को समझने की मानसिक शक्ति उन्हें प्रधान की है।
और दूसरी और ईश्वर हैं जिन्होंने तीनों लोकों का निर्माण किया है। शिक्षा का निर्माण उन्ही की ईच्छा से हुआ है तथा वे ही इस सम्पूर्ण संसार के रचयिता हैं यहां तक कि उनके गुरु के लिए भी वे पूजनीय हैं।
अत: इस दुविधा को पार पाते हुए कबीर जी अपने गुरु के पांव छूते हैं तथा कहते हैं आप मेरे लिए ईश्वर से भी ऊपर हैं क्योंकि आपने ही मुझे ईश्वर को समझने की शक्ति दी है तथा उनके मिलने का रास्ता मुझे दिखाया है। इसीलिए आप मेरे लिए भगवान से भी अधिक सम्मानीय हैं।
दोहा:
गुरु गोबिंद दोउ खड़े
शिक्षक और ईश्वर दोनों खड़े
शिक्षक और ईश्वर दोनों खड़े
काके लागू पाय
मैं पहले किसके पांव स्पर्श करूं
मैं पहले किसके पांव स्पर्श करूं
बलिहारी गुरु आपने
धन्य हो गुरु आप
धन्य हो गुरु आप
गोबिंद दियो बताए
जिन्होंने मुझे ईश्वर से मिलने का रास्ता दिखाया
जिन्होंने मुझे ईश्वर से मिलने का रास्ता दिखाया
धन्यवाद भाई ।
जवाब देंहटाएंguru govind
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