ऐसी वाणी बोलिए: इस प्रकार के वचन बोलें
मन का आपा खोए: कि मन मन्त्र मुग्ध हो जाए
औरन को शीतल करै: औरों को भी शांति मिले
आपहुं शीतल होए: स्वयं का मन भी सुख का अनुभव करे
कबीर जी इस दोहे में अपने वचनों में नम्रता व शीतलता लाने को कहते हैं। उनके अनुसार व्यक्ति के बोल इतने नम्र व सुखदाई होने चाहिए कि सामने वाले का हृदय मंत्र मुग्ध हो जाए। आपके वचन सुनने वाले के मन को सुख देने वाले होने चाहिए।
ऐसे सुखदाई वचनों से सुनने वाले के मन को तो शांति मिलती ही है साथ ही हमारा अपना मन भी इसी प्रकार के सुख व शीतलता का अनुभव करता है।
ये नियम इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति पर प्रभाव डालता है जब कोई व्यक्ति नम्रता पूर्वक बात करता है तब उसकी बात चाहे बुरी भी हो तब भी ध्यान से सुनी जाती है। इसके विपरीत कटु वचन दिल को दुख देते हैं व कटु वचन बोलने वाला व्यक्ति सामने वाले को दुखी करने के साथ साथ अपने मन की शांति भी खो देता है।
कहावत है कि कड़वा बोलने वाले का शहद तक नहीं बिकता व मीठा बोलने वाला ज़हर भी बड़ी सरलता से बेच देता है। इसलिए हमें वचनों की शक्ति समझते हुए अपनी वाणी में सार्थकता लानी चाहिए। ये ही इस दोहे का भाव है।
Kaal kare so aaj kar aaj kare so abhi
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