बुरा जो देखन मैं चला: जब मैं दूसरों में बुराई देखने लगा
बुरा ना मिलिया कोय: तब मुझे किसी में बुराई नही दिखी
जो मन खोजा आपना: जब मैंने अपने मन के अंदर झाँका
मुझसे बुरा ना कोय: तो पाया कि मुझसे बुरा तो कोई नही है जो दूसरों के सद्गुणों को नकार कर उनके दोष मात्र ढूंढ रहा है
कबीर जी दूसरों में दोष ढूंढने की बात करते हुए कहते हैं कि जब मैं दूसरों में बुराई ढूंढता था तथा अपने विवेक से ये पता करना चाहता था कि कौन सबसे बड़ा दोषी है तब मैं दूसरों के दोष मात्र देखने का प्रयास करता था। तब मैंने पाया कि संसार मे कोई भी बुरा नही है सब किसी न किसी परिस्थिति में बंधे हुए हैं। तथा वे दोष जो मैंने उनमें ढूंढे हैं वे उन्ही परिस्थियों का नतीजा है इसलिए कोई भी मन से बुरा नही है कोई भी दोषी नही है।
तत्पश्चात कबीर जी कहते हैं कि मैं जो दूसरों के दोषों के कारण उनको बुरा कहता था जब मैंने अपने अंदर झाँका तो पाया कि मुझसे बुरा इस दुनिया में कोई नही है। क्योंकि जो व्यक्ति मात्र दोष ढूंढने के लिए प्रयत्न करता है भला उससे बड़ा दोषी संसार मे और कौन होगा। इसीलिए कबीर स्वयं को सबसे बड़ा दोषी मानते हुए कहते हैं कि दूसरों की सकारात्मकता को नकार कर उनमें दोष मात्र ढूंढने वाला व्यक्ति संसार मे सबसे बड़ा दोषी स्वयं है। जो बुरा खोजने में अपने मन को लगाए हुए है।
अत: हमें नकारात्मकता को छोड़ कर सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। तथा दूसरों को अवगुण भूल कर उनके गुणों को परखना चाहिए। ये ही इस दोहे का भाव है।