दोहा लय में गाया जाने वाली चार चरणों की एक रचना होती है। जो छंद का ही एक अन्य रूप है। दोहे में लय इतनी सार्थक होती है कि इसे एक राग के रूप में भी अलापा जा सकता है।
व्याकरण की परिभाषा में एक दोहे के प्रथम व तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
दोहा हिंदी साहित्य में बहुत ही ऊंचा दर्जा रखता है। जिसमें कबीर दास जी के दोहे प्रथम स्थान पर आते हैं। इसके अतिरिक्त तुलसीदास व अन्य बहुत से रचयिता ऐसे हैं जिन्होंने दोहा रचना की।
दोहा का एक उदाहरण:
चलती चक्की देख के, खड़ा कबीरा रोय।
दो पाटों के बीच मे, साबुत बचा ना कोय।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें