साधु ऐसा चाहिए: एक ऐसा सज्जन चाहिए
जैसा सूप सुभाय: जैसा अनाज साफ करने वाला सूप होता है
सार सार को गहि रहै: जो अनाज के दानों को छोड़ कर
थोथा देई उड़ाय: बाकी के कचरे को उड़ा देता है
कबीर जी कहते हैं हमें अपने जीवन में ऐसे सज्जन की आवश्यकता होती है जिसका स्वभाव अनाज को साफ करने वाले सूप जैसा हो। जिस प्रकार सूप अनाज को साफ करते हुए दानों को अलग रख लेता है तथा कचरे को उड़ा देता है। ठीक उसी प्रकार इस स्वभाव का सज्जन यदि हमारे साथ होगा तो वह हमारे सद्गुणों को तराशते हुए हमें सार्थक बना देगा तथा हमारे अवगुणों को अनाज के कचरे की भांति समाप्त कर देगा।
हमें अपने जीवन में ऐसे सज्जनों का साथ लेना चाहिए जो इस स्वभाव के हों। चाहे वे किसी भी रूप में हमारे साथ हों। ऐसे सज्जन हमारे मित्र भी हो सकते हैं और गुरु भी।
ऐसे सज्जनों का साथ हमारे सभी अवगुणों को दूर कर हमारे जीवन को अर्थहीन से अर्थपूर्ण बना देता है। ये ही इस दोहे का भाव है।