नुसरत फतेह अली खान की ग़ज़ल रश्के क़मर में बर्क़ शब्द का ज़िक्र आता है। उर्दू भाषा के शब्द बर्क़ का हिंदी में अर्थ होता है बिजली (आसमानी बिजली)। आसमान में बादलों की गर्जन के साथ चमकने वाली आसमानी बिजली के गिरने का जिक्र इस गज़ल में किया गया है। शब्द का प्रयोग कुछ इस प्रकार है "बर्क़ सी गिर गई; काम ही कर गई" अर्थात "बिजली की तरह गिर के तबाही मचा देना"। आसमानी बिजली जिसका एक अन्य नाम "आकाशीय शक्ति" भी है के गिरने से होने वाली तबाही के ज़िक्र इस गज़ल में है।
उदाहरण: जब-जब बर्क़ चमकती है मुझे तेरा डर कर गले लग जाना याद आता है।