आढ़ती शब्द का अर्थ होता है-
कर्जदार या कृषि व्यापारी जिनसे किसान कर्ज़ लेकर अपनी फसल बोते हैं या बीजते हैं।ये किसानो के लिए बैंक की तरह काम करते हैं उन्हे ऋण देकर।
ऋण भी दो प्रकार के होते हैं-
1 ओपचारिक
2 अनोपचारिक
ओपचारिक ऋण वे होते हैं जो किसी सरकारी संस्था द्वारा चलाये जाने वाले बंकों से लिए जाते हैं। ये ऋण किसान को देखकर दिये जाते हैं यानि की उसकी क्षमता कितनी है वह कितना ऋण ले सकता है और कितने समय में दे सकता है। जिसके लिए उससे जमीन के कागजात गैरंटी के रूप में ले लिए जाते हैं। और यदि किसान ऋण वापस करणे करने में असफल रहता है। तो गारंटी के रूप में दी गयी जमीन को बैंक को नीलाम कर सकता है। इनकी ब्याज दर रेसर्वे बैंक ऑफ इंडिया निर्धारित करता है। और इनकी शर्ते अधिक सुगम और स्पष्ट होती हैं।
अनोपचारिक ऋण वे होते हैं जो किसी निजी संस्था द्वारा चलाये जाते हैं या किसी बड़े जमींदार से लिए जाते हैं जिसमे ऋण की कोई सीमा नहीं होती और किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार ऋण लेता है और उससे गारंटी के रूप में कागजात लिए जाते हैं। और यदि किसान किसान ऋण देने में असफल रेहता है तो उसकी जमीन नीलाम कर दी जाती हैं। और कर्ज़ वापस ना कर सकने पर ब्याज लगता हैं और ब्याज पर भी ब्याज लगता है । और किसान कर्ज़ जाल में फंश जाता है। इनके द्वारा लगाए जाने वाले ब्याज की दर वे स्वयं निर्धारित करते हैं। इनकी ब्याज दर ऊंची होती हैं।
आढ़तियों का उदाहरण दूसरा है।
इससे इंग्लिश में lender कहते हैं।
कर्जदार या कृषि व्यापारी जिनसे किसान कर्ज़ लेकर अपनी फसल बोते हैं या बीजते हैं।ये किसानो के लिए बैंक की तरह काम करते हैं उन्हे ऋण देकर।
ऋण भी दो प्रकार के होते हैं-
1 ओपचारिक
2 अनोपचारिक
ओपचारिक ऋण वे होते हैं जो किसी सरकारी संस्था द्वारा चलाये जाने वाले बंकों से लिए जाते हैं। ये ऋण किसान को देखकर दिये जाते हैं यानि की उसकी क्षमता कितनी है वह कितना ऋण ले सकता है और कितने समय में दे सकता है। जिसके लिए उससे जमीन के कागजात गैरंटी के रूप में ले लिए जाते हैं। और यदि किसान ऋण वापस करणे करने में असफल रहता है। तो गारंटी के रूप में दी गयी जमीन को बैंक को नीलाम कर सकता है। इनकी ब्याज दर रेसर्वे बैंक ऑफ इंडिया निर्धारित करता है। और इनकी शर्ते अधिक सुगम और स्पष्ट होती हैं।
अनोपचारिक ऋण वे होते हैं जो किसी निजी संस्था द्वारा चलाये जाते हैं या किसी बड़े जमींदार से लिए जाते हैं जिसमे ऋण की कोई सीमा नहीं होती और किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार ऋण लेता है और उससे गारंटी के रूप में कागजात लिए जाते हैं। और यदि किसान किसान ऋण देने में असफल रेहता है तो उसकी जमीन नीलाम कर दी जाती हैं। और कर्ज़ वापस ना कर सकने पर ब्याज लगता हैं और ब्याज पर भी ब्याज लगता है । और किसान कर्ज़ जाल में फंश जाता है। इनके द्वारा लगाए जाने वाले ब्याज की दर वे स्वयं निर्धारित करते हैं। इनकी ब्याज दर ऊंची होती हैं।
आढ़तियों का उदाहरण दूसरा है।
इससे इंग्लिश में lender कहते हैं।