रश्के कमर उर्दू जुबान का शब्द है जिसका हिन्दी भाषी क्षेत्रों में प्रचलित होने का कारण नुसरत फ़तेह अली खान द्वारा लिखी गई ग़ज़ल “रश्क-ए-क़मर” है। यह शब्द इस ग़ज़ल का शीर्षक है इस ग़ज़ल में उर्दू शब्दों का बहुतयात प्रयोग है इसी कारण बहुत से शब्द हैं जिन्हें समझना थोडा कठिन है उन्ही में से एक है रश्के कमर जिसका अर्थ होता है “चाँद की इर्ष्या” अर्थात वह जो इतना अधिक सुंदर है जिससे चाँद को भी इर्ष्या होने लगे उसे रश्के कमर कहा जाता है। इस शब्द को शुद्ध रूप में “रश्क-ए-क़मर” लिखा जाता है जिसे यदि अलग अलग करके समझा जाए तो “रश्क” का अर्थ होता है “इर्ष्या” तथा “क़मर" का अर्थ होता है “चाँद” इस प्रकार इन दोनों शब्दों का सयुंक्त अर्थ “चाँद की इर्ष्या” निकलता है।