भारत एक विकासशील देश है यहाँ विकास करने के लिए बहुत से क्षेत्र खाली पड़े हैं वे चाहे धन के अभाव के कारण हो या उन्नत किस्मों के अभाव से। बहुत बार हमारा ध्यान ऐसे क्षेत्र की तरफ नही जाता जिसमें लाखों का कारोबार होता है तथा जिसे हम सरलता से कर भी सकते हैं परन्तु कर नही पाते। इसका कारण होता है जीवन में चल रही अव्यवस्था। जिस नौकरी या धंधे में हम होते हैं उसकी जिम्मेदारियां हमें इस तरफ ध्यान नही लगाने देती। लेकिन सभी लोग ऐसे ही है ऐसा नही है कुछ लोगों ने कुटीर उद्योग चलाकर स्वयं को उच्च स्तर पर पहुँचाया है आखिर कुटीर उद्योग होते क्या हैं आइए जानते हैं:
कुटीर उद्योग उन उद्योगों को कहा जाता है जो घर पर ही चलाए जाते हों। इनमें लगने वाली पूंजी कम व सीमित होती है तथा घर के लोग ही इसमें श्रमिक की भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के तौर पर अचार बनाकर बिक्री हेतु बाजार में भेजना; यह कुटीर उद्योग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। कुटीर उद्योग को इंग्लिश में (Cottage Industry) कहा जाता है। इस प्रकार के उद्योगों में कम पूंजी लगती है तथा अधिक मुनाफा होने की संभावना होती है। भारत सरकार द्वारा कुटीर उद्योगों को समय-समय पर बढ़ावा दिया जाता रहा है। भारत सरकार कुटीर उद्योगों की परिभाषा इस प्रकार देती है:
"कुटीर उद्योग वे उद्योग हैं जिसपर एक परिवार अपनी निजी पूंजी लगाता है तथा इससे होने वाले कुल लाभ का पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से अकेला भागीदार होता है"
भारत मे कुटीर उद्योग परम्परागत रहे हैं तथा प्राचीन समय से ही इन उद्योगों की भारत में अच्छी खासी पैठ रही है। परन्तु अंग्रेजों के शासनकाल में विदेशी कम्पनियों के आगमन के कारण ये उद्योग पिछड़ गए थे तथा लोगों ने स्वयं का काम छोड़कर बड़ी कंपनियों में जाना शुरू कर दिया। इस कारण कुटीर उद्योगों को भारी नुकसान पहुँचा तथा धीरे धीरे इनका अंत होना शुरू हो गया। किन्तु स्वदेशी अपनाओ जैसे आंदोलनों ने इन उद्योगों में पुनः जान फूंकी। स्वदेशी का जितना अधिक प्रसार होता है कुटीर उद्योग उतने अधिक फलते फूलते हैं। कुटीर उद्योग वर्तमान में मशीनों जैसी तकनीक का उपयोग करने लगे हैं। इन उद्योगों में अचार, मोमबती, पतंग, मिट्टी के दिए इत्यादि बनाए जाते हैं।
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