गद्य उस लिखित रचना को कहा जाता है जो आम भाषा में लिखी गई हो यानि कि जैसे हम बोलते हैं वैसे ही उसे लिखित शब्दों में उतार दिया गया हो। गद्य में किसी भी प्रकार से शब्दों की संख्या, अलंकार या लयबद्ध तरीके इत्यादि का ध्यान नहीं रखा जाता। विशेष बात यह है कि गद्य में किसी भी प्रकार की कविता इत्यादि नहीं लिखी जा सकती क्योंकि यह एक सीधी और सरल भाषा होती है जिसमें हम सरल शब्दों में कोई भी बात लिखते हैं। विशेषकर जब हम किसी बात या विधि को विस्तार पूर्वक लिखते हैं तो इस प्रकार की लिखी हुई पूरी रचना को गद्य में शामिल किया जाता है। हमारे द्वारा लिखा गया कोई पत्र इत्यादि भी गद्य लेखन में आता है जो कि बिना किसी विशेष लय या कविता इत्यादि के सीधे शब्दों में लिखा जाता है।
क्योंकि गद्य की भाषा बोलचाल की भाषा का ही लिखित रुप होती है इसलिए यदि हम गद्य को पढ़ते हैं तो सामने वाले को इस तरह से महसूस होता है कि हम अपनी बात कह रहे हैं या किसी की कही हुई बात दोहरा रहे हैं। गद्य को अंग्रेजी में प्रोज (Prose) कहा जाता है।
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ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी। अपरस रहत सनेह तगा तैं नाहिन मन अनुरागी। पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी। ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी । प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी। 'सूरदास' अबला हम भोरी/ गुर चाँटी ज्यौं पागी।। 4