मजबूरी का नाम महात्मा गांधी एक कहावत है जो कि हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रसिद्ध है इस कहावत में महात्मा गांधी को रुपए का पर्यायवाची माना गया है क्योंकि भारतीय नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर होती है। यह कहावत इसलिए बोली जाती है क्योंकि सामान्य परिस्थियों में जब हम कोई कार्य करते हैं तो उस उसके पीछे भी हमारी मजबूरी होती है पैसा; और जब हम कोई कार्य नहीं कर पा रहे होते उसके पीछे भी एक ही मजबूरी होती है पैसा। इसलिए भारत में मजबूरी का नाम पैसा के स्थान पर मजबूरी का नाम महात्मा गांधी कहावत बोली जाती है और यह कहावत समय के साथ-साथ हिंदी जनों में आम हो चुकी है।
कुछ क्षेत्रों में यह कहावत आजादी से पहले भी बोली जाती थी खासकर राजनीति से सबंधित क्षेत्रों में। जहां पर राजनीतिज्ञों तथा आम भारतीय जनों को आजादी पाने का सिर्फ एक ही रास्ता नज़र आता था और वह था महात्मा गांधी। और क्योंकि महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए आंदोलनो के अनुसार ही मजबूर होकर उन्हें उसमें कूदना पड़ता था तथा महात्मा गांधी द्वारा बंद किए जाने पर आंदोलन को छोड़ना पड़ता था और ऊपर से महात्मा गांधी स्वयं अंग्रेजों के सामने किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर करने हेतु मजबूर थे इसलिए आजादी से पहले भी राजनीतिक गलियारों में "मजबूरी का नाम महात्मा गांधी" कहावत बोली जाती थी। हालांकि अब इस कहावत का मूल भी बदल चुका है और अर्थ भी; क्योंकि अब महात्मा गांधी का नाम भारतीय मुद्रा के पर्यायवाची के रूप में लिया जाता है।