यह एक कहावत है जो कि उत्तर भारत के हिंदी तथा पंजाबी भाषी इलाकों में बोली जाती है इस कहावत का अर्थ होता है कि जब भी कोई मूर्ख व्यक्ति बात करता है तो वह मूर्खता भरी बातें करता है और जब मूर्ख व्यक्ति कोई कार्य करता है तो वह मूर्खता भरा कार्य ही करता है। इसमें मूर्ख व्यक्ति को एक मृत/ मुर्दा व्यक्ति की संज्ञा देकर बताया गया है कि जब भी मुर्दा व्यक्ति बोलने की कोशिश करेगा तो वह सबसे पहले कफ़न ही फाड़ेगा। क्योंकि एक मुर्दा लाश को कफ़न में बांध रखा जाता है और यदि वह बोलने का कोई प्रयास करेगा तो वह कफन फाड़ने के बाद ही बोल सकेगा। यह पंक्ति एक कटाक्ष है तथा केवल कटाक्ष करने हेतु ही प्रयोग की जाती है।
आमतौर पर इस पंक्ति का प्रयोग उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है जो समय की नजाकत को ना समझते हुए कहीं पर भी कुछ भी बोल देते हैं तथा उन्हें नहीं पता होता कि यह बात यहां बोलनी उचित होगी या नहीं। इसलिए यदि कोई स्थिति के विरोधाभास में कोई बात बोल देता है तो उसके लिए कहा जाता है कि "मुर्दा बोले कफन फाड़े"