दुर्लभ मानुष जन्म है: मनुष्य का जन्म दुर्लभ (बहुत कम मिलने वाला) है
देह न बारम्बार: यह बार-बार नही मिलेगा
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े: ठीक वैसे ही जैसे वृक्ष का पत्ता एक बार झड़ जाने पर
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े: ठीक वैसे ही जैसे वृक्ष का पत्ता एक बार झड़ जाने पर
बहुरि न लागे डार: दोबारा वृक्ष से नही जुड़ सकता
इस दोहे में कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य को जो जन्म मिला है वह जन्म बहुत ही दुर्लभ है अर्थात बहुत ही भाग्यवान आत्माओं को यह जन्म मिलता है और एक बार तुम्हें यह जन्म मिल गया है इसका अर्थ यह नहीं है कि यह बार-बार तुम्हें मिलेगा। मनुष्य जाति हर किसी को बार-बार नहीं मिलती ठीक वैसे ही जैसे वृक्ष का पत्ता एक बार टूट जाता है तो पुनः अपनी जगह पर स्थापित नहीं हो सकता। इसी तरह एक बार मनुष्य जीवन समाप्त होने पर यह पुनः प्राप्त नहीं होगा इसलिए इस जीवन को व्यर्थ न जाने दो। इस जीवन में अच्छे कर्म करो और दूसरों को अच्छे कर्म करने हेतु प्रेरित करो। कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य को जीवन में मानवता की भलाई के लिए अपना श्रेष्ठतम योगदान देना चाहिए।
व्याख्या: इस दोहे के माध्यम से कबीर जी हर व्यक्ति को प्रेरित करते हुए उसके बहुमूल्य मनुष्य जीवन का अर्थ समझाते हैं और कहते हैं कि अपने इस जीवन को सार्थक करो। हमें यह जीवन बड़ी ही दुर्बलता से मिला है मनुष्य की आत्मा को बहुत सी योनियों में भटकने के पश्चात मनुष्य योनि की प्राप्ति होती है जिसमें वह अपनी बौद्धिक क्षमता को प्राप्त करता है। हमें इस जीवन में अपना सर्वोत्तम योगदान देना चाहिए। हर कार्य को पूरी लगन से करना चाहिए, कभी भी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए, जितना अधिक हम मानवता की भलाई में अपना समय लगा सके हमें उतना अधिक समय मानवता की सेवा में व्यतीत करना चाहिए। अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीना चाहिए। क्योंकि यदि एक बार यह जीवन समाप्त हो गया तो पुनः नहीं मिलेगा। ठीक उसी प्रकार जैसे वृक्ष से टूटने के पश्चात पत्ता पुनः वृक्ष पर नही लग सकता उसी तरह एक बार मनुष्य जीवन से टूटने के पश्चात हमारी आत्मा पुनः मनुष्य योनि में नही आएगी।