सभ्यता शब्द "सभ्य" का विस्तार रूप है इसलिए सभ्यता को समझने से पहले हमें "सभ्य" शब्द को समझना होगा। व्यक्ति द्वारा मानवीय व्यवहारों के अनुरूप रहने के तरीके को "सभ्य" कहा जाता है यानी कि वह बौद्धिक क्षमता व व्यवहार जो मनुष्य को पशुओं से अलग बनाता हैं और मनुष्य को मनुष्य बनाता है को "सभ्य" कहा जाता है और इसी तरीके को समाज में लागू करने के लिए बनाई गई सामाजिक व्यवस्था "सभ्यता" कहलाती है। सरल शब्दों में कहें तो एक मानवीय समूह द्वारा समाज में रहने के लिए जिन तौर तरीकों को अपनाया जाता है उन तौर तरीकों को सयुंक्त रूप से सभ्यता कहा जाता है।
उदाहरण के तौर पर हम सिंधु घाटी सभ्यता या वैदिक सभ्यता को ले सकते हैं सिंधु घाटी सभ्यता अपने तरीकों से समाज को बांटती थी और वैदिक सभ्यता अपने अलग तरीकों से समाज को बांटती थी। ये दोनों सभ्यताएं अपने बनाए हुए तौर तरीकों के अनुसार ही जीवन यापन करती थी। वैदिक सभ्यता वेदों से संबंधित थी जबकि सिन्धु घाटी सभ्यता स्वयं के सामाजिक मूल्यों पर आधारित थी व उन्हीं को अपना मूल मानकर उन्हीं के अनुसार कार्य करती थी। यद्यपि दोनों सभ्यताएं मनुष्यों ने ही बनाई थी लेकिन फिर भी दोनों का समाजिक, आर्थिक, राजनीतिज व सांस्कृतिक व्यवहार अलग था। हालांकि सभी सभ्यताओं के निर्माण का उद्देश्य एक ही होता है और वह उद्दश्य है समाज को सुव्यवस्थित तरीके से चलाना। इन दोनों सभ्यताओं के बीच का अंतर समझ कर हम यह जान सकते हैं कि मनुष्य सभ्य रहने के लिए किसी भी तौर तरीके का प्रयोग कर सकता है और जिन तौर तरीकों का वह प्रयोग करता है उन्हें सयुंक्त रूप से सभ्यता कहा जाता है। सभ्यता को English में Civilization (सिविलाइज़ेशन) कहा जाता है।
इसके रिफरेंस में किसी दार्शनिक की पुस्तक है क्या?
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