हाथ कंगन को आरसी क्या एक लोकोक्ति है तथा मूल रूप से आज से 500 वर्ष पूर्व भारत पर शासन करने वाले मुगलों के समय से जुड़ी है। हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या वास्तव में ये दो लोकोक्तियाँ हैं जिन्हें आपस मे जोड़ दिया गया है इसलिए इन दोनों लोकोक्तियों को अलग-अलग समझना आवश्यक है।
पहली लोकोक्ति है हाथ कंगन को आरसी क्या... यहाँ आरसी शब्द का अर्थ होता है आईना (शीशा) अर्थात यदि हाथ में कंगन पहना है तो उसे आईने की जरूरत नहीं। यह हमें प्रत्यक्ष रूप से दिख रहा है। इसलिए हाथ कंगन को आरसी क्या... लोकोक्ति का अर्थ निकलता है "प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती" जो हमें प्रत्यक्ष ही दिख रहा है उसे आईने में देखने या प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
दूसरी लोकोक्ति है पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या... यहाँ पर फ़ारसी भाषा को दो कारणों से जोड़ा गया है पहला इसलिए क्योंकि यह शब्द आरसी शब्द से मेल खाता है तथा दूसरा इसलिए क्योंकि मुगलों के समय में फ़ारसी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त था। इसलिए पढ़े लिखे भारतीयों को भी यह भाषा सीखनी पड़ती है। आम जनों में धीरे-धीरे यह बात फैल गई कि जो पढा लिखा है वह फ़ारसी अवश्य जानता है और कहा जाने लगा कि पढ़े लिखे व्यक्ति के लिए फ़ारसी सीखना कोई बड़ी बात नहीं। अर्थात वह व्यक्ति जो ज्ञानी है उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता। फ़ारसी शब्द यहाँ मुश्किल ज्ञान के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया गया है।
इस प्रकार हाथ कंगन को आरसी क्या का मतलब होता है "प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती" और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या का मतलब होता है "ज्ञानी व्यक्ति के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं होता"
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें