चारू चन्द्र की चंचल किरणें नामक कविता के विषय में अनुप्रास अलंकार अति प्रसिद्ध है। वह छंद या पंक्तियां जिसमें वर्णों की आवृत्ति (बार बार प्रयोग होना) होती है उसमें अनुप्रास अलंकार होता है। और चारू चन्द्र की चंचल किरणें कविता जो कि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित है; में अनुप्रास अलंकार है।
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
सुंदर चन्द्रमा की चंचल किरणें... जल और भूमि पर बिखर रही हैं...
चाँद की स्पष्ट रोशनी फैली हुई है... धरती और आकाश में...
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
धरती रोमांच का अनुभव कर रही है, हरे घास के नुकीले तिनकों से...
मानो ऐसा लगता है जैसे वृक्ष भी... धीमी गति से चल रही हवा में झूम रहे हैं...
क्या ही स्वच्छ चांदनी है यह
जवाब देंहटाएंहै क्या ही निस्तब्ध निशा
है स्वचंध सुमध गंध वह
निरांनद है कौन दिशा
Chal Chand Ki Chan Chan kirne Khel rahi hai Jal Thal mein
जवाब देंहटाएंPanchvati ki Chhaya mein hai sundarpur Kotputli thana use samukh swachh Shila per धीरे-धीरे nirbhik Mana Jag Raha yah Kaun dhan hota hai Yogi Sapna drishtigat hota h
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