गायत्री मंत्र यजुर्वेद व ऋग्वेद के क्रमशः मंत्र व छन्द का सयुंक्त रूप है। यद्द्पि इस महान मंत्र का अर्थ कुछ शब्दों में नही समझाया जा सकता लेकिन इस महान मंत्र का आधार समझने के लिए निम्न अर्थ पढ़ा जा सकता है।
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
ॐ = परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द
भूः = भूलोक
भुवः = अंतरिक्ष लोक
स्वः = स्वर्गलोक
त = परमात्मा अथवा ब्रह्म
सवितुः = ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता
वरेण्यम = पूजनीय
भर्गः =अज्ञान तथा पाप निवारक
देवस्य = ज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहि = हम ध्यान करते है
धियो = बुद्धि प्रज्ञा
योः = जो
नः = हमें
प्रचोदयात् = प्रकाशित करें
सरल व्याख्या : हम तीनों लोकों के वरण करने योग्य सर्वशक्तिमान ईश्वर का ध्यान करते हैं वह हमारी बुद्धि को प्रेरित (जागृत) करे।