पिछले कुछ समय से आपने यह महसूस किया होगा कि सरकार द्वारा कुछ निर्णय ऐसे लिए जा रहे हैं जो हमारे व्यवहार के विपरीत हैं यानि कि पिछले कई दशकों से जो व्यवहार हम अपनाते आ रहे थे इससे उलट कुछ ऐसे निर्णय सरकार द्वारा लिए गए हैं जो बहुत ही धीरे और समय के साथ हमारी आदत बन गए हैं। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो भारत में LPG सिलेंडर आने के बाद हमें यह आदत हो गई थी कि हम सब्सिडी पर अपना सिलेंडर प्राप्त करें (यहां पर सब्सडी शब्द को समझना आवश्यक है; सब्सिडी वह छूट होती है जो सरकार द्वारा वस्तुओं का मूल्य कम करने के लिए सहायता के तौर पर दी जाती है अर्थात उस वस्तु के कुल वास्तविक मूल्य का कुछ भाग सरकार देती है तथा बचा हुआ मूल्य उपभोक्ता को देना पड़ता है जिस कारण हमें वस्तु का मूल्य कम महसूस होता है) अब जब LPG सिलेंडर हमें लंबे समय तक सब्सिडी पर मिलता रहा तो यह बात हमारे दिमाग में घर कर गई कि LPG सिलेंडर पर सब्सिडी पाना हमारा हक है। जिस कारण सिलेंडर का रेट ₹5 बढ़ने पर भी हमें बुरा लगने लगा और उस समय आलम यह था कि सिलेंडर में पांच रुपए की बढ़ोतरी भी सरकार को घेरने का एक मुद्दा बन जाता था। हम अक्सर मीडिया या लोगों को इस बढ़ते हुए रेट के लिए सरकार को कोसते हुए देखते थे। लेकिन आज यह सब नही हो रहा हम में से कुछ लोग सरकारी विज्ञापन देख कर स्वेच्छा से अपनी सब्सिडी छोड़ देते हैं और जो सिलेंडर हमें सब्सिडी के साथ 400 से 500 रुपए में मिला करता था अब उसके लिए 700 से 800 रुपए देते हुए भी हम ज्यादा नही सोचते। आपने कभी सोचा कि इसका कारण क्या है? क्या सरकार ने इसे हमारी आदत में शुमार कर दिया है? और अगर कर भी दिया है तो कैसे? आज हम सिलेंडर के लिए अपने मासिक बजट में से ₹500 की जगह ₹800 निकालकर अलग से रखने लगे हैं और इससे हमारे बजट पर पड़ने वाला प्रभाव लगभग नगण्य है अब हमें यह चीज महसूस नहीं होती कि हम 300 रुपए ज्यादा अदा कर रहे हैं। कारण क्या है? कारण यह है कि सिलेंडर की बढ़ी हुई कीमतें हमारी आदत बन चुकी है या यूं कहें इन्हें हमारी आदत बना दिया गया है। दरअसल यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों को प्रयास, प्रचार व सुखद तरीकों के माध्यम कड़वे घूट इस तरह से पिलाए जाते हैं कि उन्हें ज्यादा तकलीफ भी न हो और सरकार का काम भी निकल जाए। सरकार द्वारा प्रयास, प्रचार तथा अन्य सुखद तरीकों के माध्यम सेे हमारी आदत बदलने की इसी प्रक्रिया को नज थ्योरी के नाम से जाना जाता है।
उदाहरण के तौर पर गांव खेड़ों में शौचालय नहीं हुआ करते थे और लोगों का यह व्यवहार था कि वे जंगल में या खेतों में शौच के लिए जाया करते थे लेकिन सरकार ने धीरे-धीरे शौचालय बनवाए और लोगों को प्रचार के माध्यम से शौचालय में जाने हेतु प्रेरित किया लेकिन जब लोग नहीं माने तो सरकार द्वारा टीमें भेजी गई गांव में जो कोशिश किया करती थी कि लोग शौचालयों का अधिक से अधिक प्रयोग करें और आज आलम यह है कि अधिकतर गांव में लोग शौचालय का प्रयोग करने लगे हैं, यह प्रक्रिया क्या है? इसे ही नज थ्योरी कहा जाता है, जब प्रचार या अन्य साधनों का प्रयोग कर किसी की आदत को बदला जाता है तो इस प्रक्रिया को नज थ्योरी कहा जाता है