यतो धर्मस्ततो जयः संस्कृत का एक श्लोक है जिसे महाभारत में अनेकों बार बोला गया है यतो धर्मस्ततो जयः का अर्थ होता है "जहां धर्म है वहां जीत है"अर्थात धर्म की सदैव जीत होती है। यह श्लोक महाभारत में अर्जुन द्वारा युधिष्ठिर की निष्क्रियता समाप्त करने के लिए प्रयोग किया गया था। इसके अलावा जब अर्जुन अपने सामने अपने बंधुओं को देखकर निष्क्रिय हो गया था और अपने शस्त्र उठाने में संकोच कर रहा था तो उस समय श्रीकृष्ण ने यह श्लोक कहा और अर्जुन को समझाया कि जहां धर्म है वही जीत है और इस समय अर्जुन धर्म के मार्ग पर है और कौरव अधर्म के मार्ग पर है इसलिए कौरवों की हार निश्चित है। यह सत्य भी था और यह सत्य साबित भी हुआ जब पांच पांडवों ने सैकड़ों कौरवों को हरा दिया।
इस श्लोक को मुख्य रूप से आज के समय में महाभारत पर आधारित टीवी सीरियलों की मुख्य थीम सांग के रूप में देखा जा सकता है। महाभारत सांग की मुख्य थीम में इस श्लोक का प्रयोग किया जाता है जिसे आप सभी महाभारत सीरियलों की शुरुआत में सुन सकते हैं।
और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) जिसका आदेश सभी नागरिकों सहित सरकार पर भी लागू होता है का ध्येय वाक्य है यतो धर्मस्ततो जयः अर्थात जहां धर्म है वहां जय (जीत) है... और इसी ध्येय वाक्य को लेकर चलते हुए भारत का सर्वोच्च न्यायालय सदैव न्याय (धर्म) के पक्ष में अपने निर्णय सुनाता है यही कारण है कि सभी नागरिकों सहित सरकार की भी सर्वोच्च न्यायालय में गहन निष्ठा और विश्वास रखती है।
आयकर विभाग के ध्येय वाक्य "कोष मूलो दण्ड" का अर्थ >>
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