* श्री कृष्ण जाप की प्रथम पंक्ति के प्रथम दो शब्द अधरं-मधरं हैं।
* अधरं-मधरं का अर्थ होता है "(हे कृष्ण...) आपके होंठ मधुर हैं।
* यह शब्द मधुराष्टकम् स्तुति में रचित हैं।
* इस पूरी स्तुति में श्री कृष्ण के रूप का गुणगान है।
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