"जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन बरंजिश" पंक्ति हिंदी फिल्म गुलामी में गए गए गीत के चलते प्रचलित हुई है। यह गीत प्रसिद्ध कवि अमीर ख़ुसरो द्वारा रचित फ़ारसी व बृजभाषा के मिलन से बनी कविता से प्रेरित है। यह कविता मूल रूप में इस प्रकार है।
ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल,
दुराये नैना बनाये बतियां...
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऐ जान,
न लेहो काहे लगाये छतियां...
इस मूल कविता का अर्थ है :
आँखे फेरके और बातें बनाके मेरी बेबसी को नजरअंदाज (तगाफ़ुल) मत कर...
हिज्र (जुदाई) की ताब (तपन) से जान नदारम (निकल रही) है तुम मुझे अपने सीने से क्यों नही लगाते...
इस कविता को गाने की शक्ल में कुछ यूँ लिखा गया है :
जिहाल-ए -मिस्कीं मकुन बरंजिश ,
बेहाल-ए -हिजरा बेचारा दिल है...
सुनाई देती है जिसकी धड़कन ,
तुम्हारा दिल या हमारा दिल है...
इस गाने की पहली दो पंक्तियों का अर्थ है :
मेरे दिल का थोड़ा ध्यान करो इससे रंजिश (नाराजगी) न रखो इस बेचारे ने अभी बिछड़ने का दुख सहा है...