फरलो लंबे समय से जेल में सजा काट रहे किसी कैदी को मानवीय आधार पर दी जाने वाली सीमित रिहाई को कहा जाता है। फरलो प्रत्येक कैदी का मानवीय अधिकार होता है ताकि वह अपनी मानसिक नीरसता तोड़कर बाहर के समाज से अपने सबंध कायम कर सके। भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार एक बार में केवल 14 दिन की फरलो ही दी जा सकती है और ये 14 दिन कैदी को मिली सजा के समय में ही गिने जाते हैं। फरलो लेना कैदी का मानवीय अधिकार होता है लेकिन यदि जेल प्रशासन को लगे कि फरलो देने से कैदी बाहरी समाज के लिए खतरा पैदा कर सकता है तो जेल प्रशासन फरलो देने से मना कर सकता है। बहुत बार फरलो और पैरोल को एक समान समझ लिया जाता है लेकिन इनमें कुछ मूलभूत अंतर होते हैं जैसे फरलो प्रत्येक कैदी का अधिकार है इसकी आवश्यकता हो या न हो लेकिन कैदी इसे ले सकता है वहीं पैरोल कैदी की आवश्यकता देखते हुए दी जाती है जैसे : कैदी के परिवार में किसी की मृत्यु के चलते, विवाह के चलते या प्रॉपर्टी सबंधी किसी समस्या के चलते पैरोल दी जा सकती है। लेकिन यदि जेल प्रशासन को लगता है कि कैदी बाहर जाकर समाज के लिए खतरा पैदा कर सकता है तो जेल प्रशासन कैदी की पैरोल को भ