जनहित याचिका वह मुकदमा होता है जो सार्वजनिक हित को बचाने के लिए किसी भी नागरिक द्वारा या कोर्ट द्वारा स्वयं पीड़ितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है।
जनहित याचिका दायर करने के लिए यह आवश्यक नही है कि पीड़ित स्वयं कोर्ट में जाकर मुकदमा करे क्योंकि बहुत लोगों को अपने कानूनी अधिकारों का पता नही होता। इसलिए कोई भी कानून का जानकार जिसे लगता है कि किसी वर्ग के साथ कुछ गलत हो रहा है तो वो उनके लिए कोर्ट में जा सकता है और एक जनहित याचिका दायर कर सकता है।
जैसे कि नाम से स्पष्ट है यह याचिका जनों का हित देखती है इसमें एक व्यक्ति का निजी हित नही होता बल्कि एक बड़े समुदाय या सभी नागरिकों के हित इससे जुड़े होते हैं।
बहुत बार जनहित याचिका के जरिए मानवाधिकार, शोषण, पर्यावरण, शिक्षा, राजनीति व न्याय व्यवस्था से जुड़े मुद्दों को भी न्यायालय में खड़ा किया गया है। इस प्रकार यह याचिका सामूहिक रूप से एक सभ्य समाज बनाने में सबसे अहम भूमिका अदा करती है।
जनहित याचिका ने भारत के माध्यम वर्ग के हितों की सर्वाधिक रक्षा की है वहीं गरीबों के लिए संवेदनशील लोगों की आवाज को भी जनहित याचिका ने तीव्र गति प्रदान की है।
जनहित याचिका संविधान या कानून में परिभाषित नही है लेकिन यदि कोई नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 226 के अंतर्गत न्याय की गुहार लगाता है तो उसकी याचिका को देख कर यह पता लगाया जाता है कि यह याचिका जनहित में है या नही। इस प्रकार जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक व्याख्या से उतपन्न हुआ एक सार्वजनिक न्याय उपकरण है।
जनहित याचिका जन समूहों के लिए न्याय की व्यवस्था करती है लेकिन यदि इस अधिकार का गलत इस्तेमाल किया जाता है तो याचिकाकर्ता पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। जनहित याचिकाओं को स्वीकार या अस्वीकार करना पूर्णतः न्यायालय की विवेकशीलता पर निर्भर करता है।
जनहित याचिका सरकार के विरूद्ध भी लाई जा सकती है और किसी निजी संगठन के विरूद्ध भी। बशर्ते यह साबित करना होता है सरकार या निजी संगठन की नीतियां जनहानि का कारण बन रही हैं।
जनहित याचिका से जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ती है और मौलिक अधिकारों का दायरा बढ़ता है जिससे जीवन सुलभ होता है तथा समाज रहने योग्य बनता है। इसके अलावा जनहित याचिका कार्यपालिका तथा विधायिका को निरंकुश होने से रोकती है तथा भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियों को कमजोर करती है।
जनहित याचिकाओं की आलोचना में यह बात बार-बार सामने आती है कि ये याचिकाएं राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने का साधन बन चुकी हैं वहीं अनावश्यक जनहित याचिकाएं न्यायालय के कीमती समय को बर्बाद भी करती हैं जिससे न्यायालय में लंबित दूसरे मुकदमों के निपटान में देरी होती है।
जनहित याचिका न्याय का एक असाधारण उपकरण है लेकिन समाज का एक तबका ऐसा है जो इसका दुरुपयोग करता है जो इसकी छवि व उपयोगिता दोनों को नष्ट करने का काम कर रहा है।