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Political Theory Meaning in Hindi | राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ

किसी भी विषय को समझने के लिए उसके सिद्धांत को समझना आवश्यक होता है जैसे यदि हमें न्याय को समझना है तो हमें इसके सिद्धांत का अध्ययन करना होगा। अर्थात हमें जानना होगा कि न्याय की परिभाषा क्या है, न्याय क्यों आवश्यक है, न्याय से समाज को क्या लाभ है और न्याय न मिलने से समाज को क्या हानि होती है। इन सब का अध्ययन न्याय के सिद्धांत का अध्ययन कहलाता है। तो इस प्रकार प्रत्येक विषय की जड़ को समझने के लिए उसके सिद्धांत को जानना आवश्यक होता है। सिद्धांत जिसे अंग्रेजी में थ्योरी कहा जाता है एक विचारात्मक उपकरण है और एक ऐसी बौद्धिक रचना है जिसे वास्तविक जीवन में लागू किया जा सकता है।

जिस विषय के सिद्धांत के बारे में बात की जाती है उस विषय का नाम सिद्धांत से जोड़ दिया जाता है जैसे न्याय का सिद्धांत, स्वतंत्रता का सिद्धांत, समानता का सिद्धांत इत्यादि। इसी प्रकार राजनीति को समझने के लिए जिस सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है उसे राजनीतिक सिद्धांत कहा जाता है और इसके अंतर्गत राज्य व इसके सभी खंडों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीतिक सिद्धांत की परिभाषा के अनुसार "दार्शनिक व व्यवहारिक रूप से राज्य का अध्ययन कर बनाए गए विचार या विचारों के समूह को राजनीतिक सिद्धांत कहा जाता है और इसका मूल कार्य मानव व्यवहार की सभी समस्याओं को समाप्त करना होता है"

उदारवादी सिद्धांत, मार्क्सवादी सिद्धांत, नारीवादी सिद्धांत इत्यादि ये सब राजनीतिक सिद्धांत के उदाहरण हैं। प्रत्येक सिद्धांत का एक मूल होता है जिसे केंद्र बिंदु मानकर वो पूरा सिद्धांत गढ़ा जाता है। जैसे उदारवादी सिद्धांत का मूल स्वतंत्रता है, मार्क्सवादी सिद्धांत का मूल वर्ग-संघर्ष है और ऐसे ही नारीवादी सिद्धांत का मूल महिला सशक्तिकरण है।

राजनीतिक सिद्धांत समय के साथ बदलता रहा है प्राचीन काल में केवल राजा के कर्मों को केंद्र में रखकर आदर्शवादी सिद्धांतो की रचना की जाती थी जिसमें इस बात पर चिंतन किया जाता था कि राजा को किस प्रकार न्याय करना चाहिए, राजा का जनता के प्रति क्या कर्तव्य है, राजा द्वारा किन परिस्थियों में किसी व्यक्ति को दंडित किया जा सकता है इत्यादि इत्यादि।

उससे आगे चलकर राजनीतिक सिद्धांत में राजा के साथ-साथ राज्य और राज्य की संस्थाओं का अध्ययन भी किया जाने लगा। जिससे राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत विचारात्मक विषयों का दायरा बढ़ गया।

उसके बाद आधुनिक युग में जनता की स्वतंत्रता के मायने भी विचारकों को समझ आने लगे और उदारवादी दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत बनाए जाने लगे। लेकिन कुछ समय बाद यह महसूस किया जाने लगा कि केवल स्वतंत्रता के पक्ष में सिद्धांत बनाने से सभी समस्याओं का हल नही हो सकता इसलिए हमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र इत्यादि विषयों पर भी अध्ययन करना होगा। इस प्रकार इन विषयों को सयुंक्त रूप से उदारवादी सिद्धांत में जोड़ दिया गया और व्यक्ति को केंद्र में रख कर राजनीतिक सिद्धांत बनाए जाने लगे इसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों पर बल दिया जाने लगा और विचारकों द्वारा सरकार की शक्तियों पर कुछ अंकुश लगाने की वकालत की जाने लगी।

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा लोगों द्वारा की जाने वाली माँग, हड़ताल, धरना प्रदर्शन इत्यादि को भी विचारकों ने अध्ययन का विषय बना लिया और व्यवहारवादी सिद्धांतों की रचना की। व्यवहारवादी विचारकों का मत था कि यदि वास्तव में राजनीतिक सिद्धांतों को व्यवहार में लाने हेतु अनुकूल बनाना है तो हमें लोगों के व्यवहार का अध्ययन करना होगा जिसके चलते इन बातों पर तथ्य आधारित चिंतन होने लगा कि लोग माँग क्यों उठाते हैं, सरकार क्यों गिराते हैं और सरकार का विरोध क्यों करते हैं इत्यादि।

थोड़ा आगे चलकर पर्यावरण को भी राजनीतिक विषयों में शामिल किया जाने लगा ताकि गलत राजनीति, संसाधनों के खनन और अंधाधुंध अर्थव्यवस्था के चलते प्राकृतिक नुकसान को भरा जा सके। अंतः यह निष्कर्ष निकाला गया कि राजनीतिक सिद्धांत बनाते हुए उस प्रत्येक विषय का अध्ययन किया जाना अनिवार्य है जो मानवीय क्रिया कलापों के चलते प्रभावित होते हैं।

आधुनिक युग में विचारकों के समक्ष एक ऐसा विषय आया जिसे प्राचीन समय से लेकर आज तक राजनीतिक विचारकों द्वारा लगातार नजरअंदाज किया जा रहा था और वह विषय था नारी के अधिकार। प्राचीन विचारकों ने जब भी कोई राजनीतिक सिद्धांत बनाया तो उसे पुरुष दृष्टि से बनाया। उसमें कभी भी नारी को तरजीह नही दी गई। इसलिए नारीवादी विचारकों ने प्राचीन में बने सभी सिद्धातों को खारिज करते हुए नारीवाद का सिद्धांत दिया। ताकि प्राचीन काल से प्रत्येक स्तर पर पिछड़ी महिला जाति को सशक्त किया जा सके और इस प्रश्न का उत्तर खोजा जा सके कि क्यों समाज ने नारी सदैव नजरअंदाज करते हुए सामाजिक कार्यों के लिए अयोग्य मान लिया। इस प्रकार समय के साथ राजनीतिक सिद्धांतों के अध्ययन में असंख्य विषय जुड़ते चले गए जिनमें नारीवाद उभर कर सामने आया।

नए राजनीतिक सिद्धांत की रचना करने के लिए सर्वप्रथम मौजूदा स्थिति में लागू राजनीतिक सिद्धातों की तथ्यों व वास्तविकता के आधार पर व्याख्या की जाती है। इसके बाद उस सिद्धांत के गुणों व दोषों पर नैतिक चिंतन किया जाता है इस प्रक्रिया को समालोचना कहा जाता है। ततपश्चात मूल्यों व आदर्शों को ध्यान में रखते हुए नए राजनीतिक सिद्धांत की रचना की जाती है इस प्रक्रिया को पुनः निर्माण कहा जाता है। पुनः निर्मित सिद्धांत में पुराने सिद्धातों के सभी दोष समाप्त करने की कोशिश की जाती है तथा नए गुण डाले जाने का प्रयास किया जाता है।

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