मूल रूप से सोचने-विचारने की प्रक्रिया को चिंतन कहा जाता है जब भी हम किसी विषय पर सोच-विचार करते हैं तो हम चिंतन कर रहे होते हैं। चिंतन किया जाना भारत के इतिहास का अहम अंग रहा है हालांकि भारतीय चिंतन का झुकाव सदैव धर्म की ओर रहा है। जिस कारण लंबे समय तक लोगों के आदर्श, मूल्य व अधिकार क्या होने चाहिएं इन प्रश्नों का उत्तर केवल धार्मिक दृष्टि से ही दिया गया तथा एक आदर्श राज्य कैसा होना चाहिए इसका उत्तर भी धार्मिक चिंतन से ही खोजने का प्रयास किया गया।
परंतु समय के साथ यह महसूस किया जाने लगा कि धार्मिक चिंतन को राज्य से अलग किया जाना चाहिए क्योंकि धार्मिक चिंतन मौलिकता प्रधान नही कर पा रहा है एक राज्य के क्या कार्य होने चाहिएं इसका उत्तर राज्य का अध्ययन करने के पश्चात दिया जाना चाहिए न कि धर्म का। ताकि चिंतन का स्वरूप मौलिक हो सके और यहीं से राजनीतिक चिंतन की अवधारणा सामने आई।
राजनीतिक चिंतन की परिभाषा के अनुसार "राज्य के कार्य, उत्पति, प्रकृति, लक्ष्य, कानून, अधिकार, शक्ति, सरंचना व राज्य के किसी भी घटक पर सोच-विचार करने की प्रक्रिया को राजनीतिक चिंतन कहा जाता है"
सामान्य तौर पर प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग विषयों पर चिंतन करता है किंतु हमारा चिंतन उस समय राजनीतिक चिंतन बन जाता है जब हम राज्य के किसी घटक पर विचार करते हैं जैसे कि : राज्य सरकार, पंचायत, नगर पालिका इत्यादि। राजनीतिक चिंतन में प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार होते हैं समाज इन्हें मानने या न मानने हेतु स्वतंत्र होता है।
मुख्य भारतीय राजनीतिक चिंतकों में हम मनु और कौटिल्य से लेकर राजा राम मोहन राय और भीमराव अंबेडकर जैसे लोगों का नाम ले सकते हैं।
बहुत बार हम राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक सिद्धांत व राजनीतिक दर्शन में अंतर नहीं समझ पाते क्योंकि ये तीनों शब्द एक जैसे ही प्रतीत होते हैं।
दरअसल राजनीतिक चिंतन से अभिप्रायः राज्य व इसके खड़ों का विचार करने से है। आम व्यक्ति भी जब राज्य के बारे में विचार करता है तो उसे राजनीतिक चिंतक कहा जा सकता है। चिंतन करने के बाद बनाए गए वे विचार जिन पर आधारित होकर कोई व्यवस्था चलती है और जिन्हें वास्तविक जीवन में लागू किया जा सकता है उन्हें राजनीतिक सिद्धांत कहा जाता है। वहीं जब चिंतन करने का उद्देश्य राज्य की स्थापना के अंतिम सत्य को प्राप्त करना हो तो उसे राजनीतिक दर्शन की संज्ञा दी जाती है।
उदाहरण के तौर पर : यह सोचना कि राज्य कैसा है राजनीतिक चिंतन कहलाता है; और राज्य के सभी तत्वों का अध्ययन कर यह विचार बनाना कि राज्य कैसा होना चाहिए यह राजनीतिक सिद्धांत कहलाता है और वहीं पूर्णतः गंभीर होकर यह ज्ञात करने का अंनत प्रयास करना कि वास्तव में राज्य कैसा होना चाहिए? यह राजनीतिक दर्शन कहलाता है।
इस प्रकार चिंतन साधारण विचारों को कहा जाता है; सिद्धांत लागू किए जा सकने वाले विचारों को कहा जाता है तथा दर्शन अंतिम सत्य की खोज करने वाले गंभीर विचारों को कहा जाता है।