हाल ही में लेबनान की राजधानी में अमोनियम नाइट्रेट के भंडार में हुए विस्फोट के कारण लेबनान देश चर्चा में आ गया है। हालांकि यह तो एक दुर्घटना थी लेकिन पहली नजर में इसे एक हमला माना गया कारण है लेबनान का हमलों से भरा इतिहास। लेबनान के लोग छोटे-मोटे हमलों के आदि हैं; लेकिन इस हादसे ने पहले से ही अनेक समस्याओं से जूझ रहे लेबनान को एक नया घाव दे दिया है। लेबनान का दुर्भाग्य है कि वो सीरिया और इजरायल के बीच में स्थित है जिस कारण ना चाहते हुए भी लेबनान की सरकार अपने देश में शांति स्थापित कर पाने में आज तक असफल है। इस वीडियो में आपको लेबनान के बारे में बहुत सी ऐसी जानकारियां मिलेंगी जिनके बारे में हर उस नागरिक को पता होना चाहिए जो अपने देश में शांति स्थापित करने की कामना करता है। तो आइए जानते हैं लेबनान देश के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य।
लेबनॉन पश्चिमी एशिया में भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित एक देश है।
इसका आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ लेबनान (लेबनान गणराज्य) है। गणराज्य ऐसे देश को कहा जाता है जहां आम नागरिक देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हो सके।
लेबनान पूर्व व उत्तर दिशा में सीरिया देश से सीमा बनाता है वहीं इसके दक्षिण में इजरायल देश स्थित है वहीं इसके पश्चिम में भूमध्य सागर स्थित है।
लेबनान की राजधानी का नाम बेरूत है (जो 04 अगस्त 2020 को हुए धमाके के चलते चर्चा में है)
लेबनान की आधिकारिक भाषा अरबी है।
लेबनान में 54% मुस्लिम (जिनमें शिया व सुन्नी दोनों सम्प्रदायों की लगभग आधी-आधी आबादी है) 41% ईसाई तथा 05% द्रूस रहते हैं। (द्रूस एक एकेश्वरवादी समुदाय है जिसे शिया सम्प्रदाय की शाखा के रूप में जाना जाता है)
लेबनान में एकात्मक संसदीय प्रणाली है तथा यह एक संवैधानिक गणराज्य है। इस देश की सरकार में राजनीति व धर्म का मिला जुला रूप शामिल है।
लेबनान का क्षेत्रफल 10,452 वर्ग किलोमीटर है तथा इसकी जनसंख्या 68 लाख 60 हजार के लगभग है।
लेबनान की मुद्रा "लेबनानी पाउंड" है मौजूदा समय में भारत का एक रूपया लगभग 20 लेबनानी पाउंड के बराबर है।
लेबनान वर्ष 1516 से 1918 तक उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन एम्पायर) के अधिकार में रहा तथा प्रथम विश्व युद्ध में उस्मानी साम्राज्य का पतन के बाद दो वर्षों तक आजाद रहा।
उस्मानी साम्राज्य के पतन के बाद वर्ष 1920 में लेबनान को फ्रेंच मैंडेट के अंतर्गत फ्रांस के अधिकार में सौंप दिया गया। इस मैंडेट में यह तय किया गया कि जब लेबनान के लोग स्वयं की सरकार बनाने के योग्य हो जाएंगे तो इसे आजाद कर दिया जाएगा।
जब लेबनान फ्रांस के अधिकार में था तो फ्रांस ने वर्ष 1920 में सीरिया सहित आसपास के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर "ग्रेटर लेबनान" की स्थापना की।
वर्ष 1943 लेबनान में स्थानीय सरकार बनी तथा उसने मैंडेट को एकतरफा रूप से समाप्त कर दिया।
फलस्वरूप प्रतिक्रिया करते हुए फ्रांस ने लेबनान की नई सरकार को जेल में डाल दिया लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते 22 नवंबर 1943 के दिन इस नई सरकार को पुनः रिहा कर दिया गया। फलस्वरूप लेबनान को आजादी मिली।
फ्रांस ने वर्ष 1946 में लेबनान से अपनी पूरी सेना वापिस बुला ली तथा लेबनान पूरी तरह से एक स्वतंत्र देश बन गया।
स्वतंत्रता के बाद लेबनान ने अपनी खुद की कॉन्फेशनलिज्म (Confessionalism) रूपी सरकार स्थापित की।
कॉन्फेशनलिज्म सरकार लेबनान से पहले किसी देश में देखने को नही मिली थी। सरकार के इस रूप में लेबनान ने अपने यहां के सभी धर्मों को सम्मान देने के लिए सरकारी व्यवस्था में धार्मिक व राजनीतिक गठजोड़ स्थापित किया।
इस व्यवस्था के अंतर्गत यह तय किया गया कि लेबनान का राष्ट्रपति केवल मेरोनाईट ईसाई समुदाय का सदस्य बन सकेगा; प्रधानमंत्री केवल सुन्नी समुदाय का सदस्य बन सकेगा; तथा स्पीकर ऑफ चैंबर केवल शिया समुदाय का सदस्य ही बन सकेगा।
इस प्रकार लेबनान की सरकार में राजनीतिक व धार्मिक संतुलन स्थापित हुआ।
लेबनान के प्रथम राष्ट्रपति बी. अल खौरी (B. El Khoury) बने।
लेबनान वर्ष 1945 में सयुंक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य देश बना। वहीं वर्ष 1961 में गुट निरपेक्ष देशों में भी शामिल हुआ।
शुरुआती तौर पर लेबनान में राजनीतिक व आर्थिक स्थिरता बनी रही लेकिन वर्ष 1975 में लेबनान में गृह युद्ध शुरू हो गया जो वर्ष 1990 तक चला और यहीं से लेबनान के बुरे दिन शुरू हो गए। (गृह युद्ध किसी देश के अंदर विभिन्न समुदायों में पनपी हिंसा को कहा जाता है जहां देश के नागरिक संगठन बनाकर आपस में ही लड़ने लगते हैं)
इस युद्ध के कारण लेबनान में लगभग 01 लाख 20 हजार लोगों की मृत्यु हुई; 76 हजार लोग विस्तापित होने पर विवश हुए जबकि लगभग 10 लाख लोग देश छोड़ने पर मजबूर हुए।
लेबनान के इस गृह युद्ध का कारण क्षेत्रीय ताकतों (विशेषकर इजरायल, सीरिया और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन) द्वारा लेबनान को अपने आपसी झगड़े सुलझाने के लिए लड़ाई के मैदान के तौर पर इस्तेमाल करना था।
फिलिस्तीन मुक्ति संगठन फिलिस्तीन नामक स्वतंत्र देश स्थापित करने के उद्देश्य से सन् 1964 में गठित हुआ एक संगठन है। 100 से अधिक देशों ने इसे फिलिस्तीनी लोगों का एकमात्र वैधानिक प्रतिनिधि स्वीकार किया है। हालांकि अमेरिका और इजरायल इसे आंतकवादी संगठन मानते हैं फिलिस्तीनी शरणार्थी वो लोग हैं जिन्हें 1948 में इजरायल की स्थापना के समय देश से निष्काषित कर दिया गया था और फिलिस्तीन का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया था। ये शरणार्थी आज भी अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए इजरायल पर हमलावर हैं।
लेबनान गृह युद्ध के बीज उस समय बोए गए जब वर्ष 1967 में फिलिस्तीनी शरणार्थियों ने इजरायल पर हमला करने के लिए लेबनान में बेस स्थापित कर लिया। कारण था लेबनान का इजरायल से सीमा बनाना।
फलस्वरूप इजरायल ने वर्ष 1982 में लेबनान पर हमला किया तथा पूरे देश से फिलिस्तीनियों को निकाल बाहर करने के उद्देश्य से लेबनानी इलाकों पर काबिज हुआ।
लेबनान में इजरायल के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए इसके विरोध में वर्ष 1985 में ईरान की सहायता से लेबनान में हिजबुल्ला की स्थापना हुई। (हिजबुल्ला एक शिया राजनीतिक और अर्द्धसैनिक संगठन है जो आज लेबनान की आधिकारिक सेना से भी अधिक ताकतवर है तथा लेबनान की सरकार में हिस्सेदार है। यह संगठन अपने धर्म को लेकर कट्टर है और आज भी इजरायल के खिलाफ कार्यरत है)
वर्ष 1990 में लेबनान का गृह युद्ध समाप्त हुआ तथा वर्ष 2000 में इजरायल ने अपनी सेना वापिस बुला ली।
वहीं फिलिस्तीनी शरणार्थियों के खिलाफ संघर्ष हेतु लेबनान में सीरिया की सेना भी वर्ष 1976 से 2005 तक अपना वर्चस्व रख चुकी है।
लेकिन संस्कृतियों व धर्मों से संपन्न होने के बावजूद भी लेबनान आज तक एक स्थिर आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था के लिए आज तक संघर्ष कर रहा है।
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