जैन धर्म के दो सम्प्रदाय हैं; एक सम्प्रदाय है श्वेताम्बर और दूसरा सम्प्रदाय है दिगम्बर; श्वेताम्बर शब्द श्वेत और अंबर से बना है अर्थात सफेद जिसका वस्त्र हो; दिगम्बर शब्द दिक् और अंबर से मिलकर बना है अर्थात दिशा ही जिसका अंबर यानी कि वस्त्र है; दिगम्बर संप्रदाय के अनुयायी मोक्ष प्राप्त करने के लिए नग्नतत्व को मुख्य मानते हैं; जबकि श्वेताम्बर ऐसा नही मानते और सफेद वस्त्र ग्रहण करते हैं
जैन धर्म इन दो सम्प्रदायों में 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के लगभग 200 वर्षों बाद मगध के राजा चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में बंटा; क्योंकि आचार्य भद्रभाहु (जैन धर्म के गुरु) ने मगध में पड़े 12 वर्षों के भीषण अकाल के कारण दक्षिण में जाने का निर्णय लिया था; जबकि स्थूलभद्र (दूसरे जैन गुरु) ने अपने शिष्यों के साथ मगध में ही रूकने का निर्णय लिया; स्थूलभद्र के शिष्यों ने श्वेत वस्त्र धारण करना शुरू कर दिया और माना जाता है कि उस समय जैन धर्म के मूल सिद्धांतो में भी परिवर्तन हुआ
तब से जैन धर्म दो सम्प्रदायों में बंटा हुआ है और दोनों के अलग-अलग विश्वास हैं; श्वेताम्बर पूज्य मूर्तियों को कपड़ों और आभूषणों से सजाते हैं जबकि दिगम्बर ऐसा नही करते; श्वेताम्बर साधु जैन सिद्धांतों के अनुसार निश्चित की गई 14 वस्तुओं को धारण कर सकते हैं जबकि दिगम्बर कमंडलु (भिक्षापात्र/ प्राचीन में दरियाई नारियल से बना), शास्त्र और मोर पंख से बने झाड़ू (पिच्छी) को अपने साथ रखते हैं
श्वेताम्बर कुछ घरों से दान में भोजन लेते हैं और एक से अधिक बार भोजन का सेवन कर सकते हैं जबकि दिगम्बर केवल पानी लते हैं दानी खुद की इच्छा से दिया गया भोजन दिन में केवल एक ही बात ग्रहण करते हैं; श्वेताम्बर मानते हैं कि जैन धर्म की 19 वीं तीर्थंकर मल्लीनाथ स्त्री थी और उनका वास्तविक नाम मल्ली बाई था जबकि दिगम्बरों के अनुसार 19 वें तीर्थंकर पुरुष थे; श्वेताम्बर मानते हैं कि महावीर स्वामी ने साधु बनने से पूर्व शादी की थी और उनकी एक पुत्री (प्रियदर्शनी) भी थी जबकि दिगम्बर इस बात से सहमत नही हैं; श्वेताम्बर मानते हैं कि स्त्री पुरुष के समान मुक्त हो सकती है जबकि दिगम्बर मानते हैं कि स्त्री को मुक्ति पाने के लिए पुरुष रूप में पुनर्जन्म लेना पड़ता है; श्वेताम्बर मानते हैं कि जैन धर्म के पवित्र णमोकार मंत्र की प्रथम नौ पंक्तियों का उच्चारण किया जाना चाहिए जबकि दिगम्बरों के अनुसार यह सँख्या पाँच होनी चाहिए; हालांकि दोनों सम्प्रदाय जैन धर्म के मूल सिद्धातों में विश्वास रखते है लेकिन दोनों की व्याख्याओं में अंतर है
इसके अलावा दिगम्बर श्वेताम्बरों के 45 ग्रंथों को वे स्वीकार नहीं करते; दिगम्बर और श्वेताम्बर की परंपराएं अलग हैं; दोनों सम्प्रदायों के परिधान, मंदिर और शास्त्र अलग हैं, दोनों का महिला सन्यासियों के प्रति दृष्टिकोण भी अलग है; दोनों के ग्रन्थों में भी ऐतिहासिक मतभेद हैं; दिगंबर संन्यासी किसी भी भौतिक वस्तुओं के मोह से मुक्त होते हैं; दिगम्बर भिक्षु एक समुदाय के स्वामित्व वाली पिच्छी लेकर चलते हैं जो कि मोर के पंखों से बना एक झाड़ू होता है इससे वे रास्ते में पड़े या बैठने के स्थान पर मौजूद कीड़ों को साफ कर उनका जीवन बचाते हैं; दिगंबर जैन समुदाय वर्तमान में मुख्य रूप से कर्नाटक के जैन मंदिरों, दक्षिण महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में मिलते हैं; विद्वान जेफरी डी लांग के अनुसार भारत के सभी जैनियों में पांचवें हिस्से से भी कम अनुयायी दिगंबर विरासत का अनुसरण करते हैं; दिगम्बर खुद को महावीर स्वामी (24 वें तीर्थंकर) के वास्तविक अनुयायी मानते हैं जबकि श्वेताम्बर इस तथ्य के विरोध में हैं।
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