देश के वे राज्य जो अन्य राज्यों की तुलना में संसाधनों के मामले में पिछड़े हुए हैं ऐसे राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है; यह दर्जा मुख्य रूप से कम जनसंख्या घनत्व, बड़ा आदिवासी बहुल क्षेत्र, पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र, अंतरराष्ट्रीय सीमा, कम प्रति व्यक्ति आय, उद्योग धंधे लगाने में असमर्थता, सामाजिक-आर्थिक विषमताएं या बुनियादी ढाँचे की कमी के आधार पर दिया जाता है
कुल मिलाकर जिन राज्यों के पास खुद के संसाधन सीमित होते हैं उन्हें यह दर्जा मिलता है; मौजूदा समय में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है
इन विशेष राज्यों को केंद्रीय सहयोग के तहत अधिक अनुदान मिलता है विशेष राज्यों को 90% अनुदान व 10% ब्याज मुक्त ऋण मिलता है जबकि अन्य राज्यों को 30% अनुदान और 70% कर्ज मिलता है; इसके अलावा कर में छूट व अन्य विशेष पैकेज भी दिए जाते हैं जिससे इन राज्यों में निजी निवेश को बढ़ावा मिलता है; संविधान में विशेष राज्य का प्रावधान नही है लेकिन केंद्र-राज्य के आर्थिक संबंधों का जिक्र अवश्य है; 14 वें वित्त आयोग के बाद उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों को छोड़ यह दर्जा किसी अन्य राज्य को न दिए जाने का फैसला लिया गया है; बिहार सहित राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गोवा और ओडिशा इस दर्जे की माँग कर रहे हैं।