किसी भी सॉफ्टवेयर को बनाने के लिए सबसे पहले उसे कोडिंग के जरिए डिजाइन किया जाता है। इसके बाद उसकी टेस्टिंग की जाती है तथा जो भी Error मिलते हैं उन्हें Debug किया जाता है तथा फिर से टेस्ट किया जाता है।
जब सॉफ्टवेयर फाइनली तैयार हो जाता है तो उसे प्रयोग करके देखा जाता है शुरुआती फेज में सॉफ्टवेयर को कंपनी के एम्प्लॉयीज द्वारा प्रयोग करके टेस्ट किया जाता है। खुद से पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद सॉफ्टवेयर को पब्लिक में रिलीज किया जाता है ताकि पब्लिक इसे टेस्ट कर सके। सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के इसी फेज को बीटा वर्जन कहा जाता है।
बीटा वर्जन में भी दो तरीके अपनाए जाते हैं पहला क्लोज्ड बीटा जिसमें कुछ खास लोगों को ही सॉफ्टवेयर प्रयोग करने के लिए चुना जाता है। तथा दूसरा होता है ओपन बीटा जिसमें पूरी पब्लिक के लिए सॉफ्टवेयर का बीटा वर्जन रिलीज किया जाता है।
बीटा वर्जन का प्रयोग कर यूजर्स बग्स की रिपोर्ट करते हैं तथा सॉफ्टवेयर खुद भी डेवलपर्स के सर्वर पर जानकारी भेजता है। इन रिपोर्ट्स व जानकारी के माध्यम से डेवेलपर बग्स को रिमूव करते हैं तथा सॉफ्टवेयर को फाइनल रिलीज के लिए तैयार करते हैं। इसके बाद सॉफ्टवेयर की फाइनल रिलीज होती है।