हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी द्वारा लिखित पुस्तक "यत्र तत्र सर्वत्र" के प्रकाशन के बाद से इस शब्द की आम जनों में प्रसिद्ध को नया आयाम मिला है। हालांकि संस्कृत के श्लोक में इस शब्द का स्वरूप "अत्र तत्र च सर्वत्र" के रूप में देखा जा सकता है।
अत्र तत्र सर्वत्र संस्कृत के तीन शब्दों से मिलकर बना है पहला शब्द है अत्र अर्थात यहाँ, दूसरा शब्द है तत्र अर्थात वहाँ और तीसरा शब्द है सर्वत्र अर्थात हर जगह। इस प्रकार अत्र तत्र सर्वत का सयुंक्त अर्थ निकलता है "यहाँ वहाँ हर जगह" अर्थात वो जो हर जगह विद्यमान हो। हिन्दी में इसे सर्वव्यापी तथा अंग्रेजी में इसे Omnipresent ओमनीप्रेजेंट कहा जाता है।
इस शब्द से मिलते जुलते अन्य शब्द हैं कुत्र (कहाँ), अन्यत्र (अन्य जगह), यत्र (जहाँ), एकत्र (एक साथ) इत्यादि।