ADR एक संस्था है जो भारत में जितने भी चुनाव होते हैं उनके बारे में जानकारी मुहैया करवाती है। चुनावों में जो भी प्रत्याशी भाग लेते हैं या जितने भी विधायक और सांसद देश मे हैं उनका बैकग्राउंड क्या है। यानी कि उन्होंने क्या पढ़ाई की हुई है, उनके खिलाफ किस प्रकार के अपराधिक मामले दर्ज हैं और उनकी कुल संपत्ति कितनी है। इन सब की जानकारी ADR उपलब्ध करवाती है और यह जानकारी एडीआर इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट से प्राप्त करती है।
ADR की फुल फॉर्म हैओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और इसकी स्थापना वर्ष 1999 में हुई थी। वर्ष 1999 में एक ग्रुप IIM अहमदाबाद के प्रोफेसर के एक ग्रुप द्वारा इसकी स्थापना को गई थी। इस ग्रुप ने वर्ष 1999 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने पूछा था कि क्या भारत के चुनावों में भाग लेने वाले प्रत्याशियों को अपने आर्थिक, आपराधिक (यदि कोई है) और शैक्षणिक बैकग्राउंड के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए और इस जनहित याचिका के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 और बाद में वर्ष 2003 में यह अनिवार्य कर दिया कि जितने भी प्रत्याशी चुनावों में भाग लेंगे उनके लिए यह आवश्यक है कि वे अपना आपराधिक, आर्थिक और शैक्षणिक ब्यौरा दें। और इस के बारे में एक एफिडेविट बनाकर चुनाव आयोग के पास जमा करें। आज इसी एफिडेविट के माध्यम से दी गई जानकारी के आधार पर एडीआर रिपोर्ट पब्लिश करता है जिसमें वह बताता है कि जितने भी लोग मंत्रिमंडल में शामिल है या जितने भी विधायक है या सांसद हैं उनका आपराधिक, शैक्षणिक और आर्थिक बैकग्राउंड क्या है। एडीआर इस कार्य को वर्ष 2002 से नेशनल इलेक्शन वॉच के साथ मिलकर कर रहा है और इसका उद्देश्य है चुनावों में ज्यादा से ज्यादा ट्रांसपेरेंसी और अकाउंटेबिलिटी लेकर आना।