महाकाव्य जिसे सर्गबंध भी कहा जाता है।
शास्त्रीय संस्कृत में भारतीय महाकाव्य कविता की एक शैली है।
इसमें सर्गों का निबंधन होता है।
इस शैली में दृश्यों, प्रेम, युद्धों आदि के अलंकृत और विस्तृत विवरणों की विशेषता है।
इसे संस्कृत साहित्य का सबसे प्रतिष्ठित रूप माना जाता है।
महाकाव्य प्रबंध काव्य का भेद है इसमें प्राचीन इतिहास की कथावस्तु होती है।
महाकाव्य में श्रृंगार, शांत या वीर रस में से कोई प्रमुख रस प्रधान रस होता है।
इसके कुछ विशेष उदाहरण हैं कुमारसम्भवम् और किरातार्जुनीयम्
इस शैली में 15 से 30 सर्ग और 1500 से 3000 छंद के संग्रह को महाकाव्य माना जाता है हालाकिं ये महाकाव्य महाभारत और रामायण जैसे विशाल महाकाव्यों से बहुत छोटे हैं।
रामायण में (500 सर्ग, 24000 छंद) और महाभारत में (लगभग 100000 छंद) हैं।
महाकाव्य की विशेषता है कि इसमें सदैव 8 से ज्यादा सर्ग होते हैं।
इसमें नायक धीरोदात्त, महान एंव उदार होना चाहिए और प्रारंभ में देवी देवताओं की आराधना होनी चाहिए।
इसके साथ ही महाकाव्य रचना में कथावस्तु क्रमबद्ध व सूत्रात्मक होनी चाहिए।
एक महाकाव्य में समस्त जीवन का अंकन होना चाहिए।
हिंदी के महाकाव्यों के उदाहरण के रूप में हम रामधारी सिंह दिनकर के कुरूक्षेत्र,जयशंकर प्रसाद के कामायनी, मोहनलाल महतो के आर्यावर्त, गुरूभक्त सिंह के नूरजहां, श्याम नारायण पांडेय के हल्दीघाटी, हरदयाल सिंह के दैत्यवंश,अंबिका प्रसाद 'दिव्य' के गांधी पारायण,डॉ॰ बलदेव प्रसाद मिश्र के साकेत संत, मैथिलीशरण गुप्त के साकेत औरकेशवदास के रामचंद्रिका को देख सकते हैं।
वहीं संस्कृत के महाकाव्य हैं वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण, वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत, श्री हर्ष द्वारा रचित नैषधीय चरित, कालिदास द्वारा रचित कुमारसंभव, भारवि द्वारा रचित किरातार्जुनीयम्, कालिदास द्वारा रचित रघुवंश, माघ द्वारा रचित शिशुपाल वध, अश्वघोष द्वारा रचित बुद्धचरित आदि को देख सकते हैं।
कुमारसम्भव, रघुवंश, कीरातार्जुनीयम्, नैषधचरित और शिशुपालवध को सयुंक्त रूप से 'पंचमहाकाव्य' कहा जाता है।