वर्ग संघर्ष जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स का दिया हुआ सिद्धांत है जो कहता है कि समाज हमेशा से अमीर और गरीब नाम के दो वर्गों बंटा रहा है, और इन दोनों वर्गों के हित आपस में टकराने से दोनों के बीच हमेशा संघर्ष बना रहता है, यही वर्ग संघर्ष यानी क्लास स्ट्रगल है।
मार्क्स के अनुसार ये दोनों वर्ग मीन्स ऑफ प्रोडक्शन को लेकर आपस में बंटे हुए हैं, मीन्स ऑफ प्रोडक्शन, जमीन, लेबर और पैसे को कहा जाता है। जो वर्ग जमीन, लेबर और पैसे पर नियंत्रण किए हुए है उसे अमीर, सामंत, बुर्जुआ या पूंजीपति वर्ग कहा जाता है, और जिसके पास इनका नियंत्रण नही है, उसे गरीब, किसान, सर्वहारा या श्रमिक वर्ग कहा जाता है, श्रमिक वर्ग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पूंजीपतियों पर डिपेंड करता है, तथा इनके द्वारा चलाए गए कारखानों में काम करता है, बदले में वे उसे पैसा देते हैं।
पूंजीपति लोग ज्यादा लाभ कमाने के लालच में श्रमिकों का शोषण करते हैं, और इन्हें कम से कम सेलरी देना चाहते हैं, जबकि श्रमिक अपनी जरूरत पूरी ना होने के चलते ज्यादा सेलरी की माँग करते हैं, इस वजह से संघर्ष पैदा होता है, क्योंकि एक के फायदे में दूसरे का नुकसान छुपा हुआ है।
मार्क्स कहता है कि यह संघर्ष सदियों से चला आ रहा है, बस शोषक और शोषितों का नाम बदल गया है, इनका नाम पहले सामंत और किसान हुआ करता था, आज ये दोनों वर्ग कारखानों के मालिक और मजदूर हो गए हैं।
मार्क्स इस संघर्ष का अंत भी बताता है, अपनी पुस्तक साम्यवादी घोषणापत्र में वह लिखता है की पूंजीवाद अपनी ही बनाई व्यवस्था का शिकार होकर समाप्त हो जाएगा, क्योंकि इसकी प्रवृति अधिक से अधिक धन कमाने की है, जिससे धन एक तरफ संकुचित होता है, समय के साथ धन कुछ ही पूंजीपतियों तक सीमित होने लगेगा तथा इनकी सँख्या लगातार कम होने लगेगी, तो वहीं प्रोडक्शन बढ़ने से श्रमिकों की सँख्या ज्यादा होने लगेगी, सर्वाधिक अमीर पूंजीपति ज्यादा प्रोडक्शन की खपत के लिए दूसरे देशों और अंततः वे अपनी शक्ति को पहचान कर क्रांति कर देंगे और पूंजीपतियों को उखाड़ फेकेंगे। इस प्रकार केवल श्रमिक वर्ग की शेष रह जाएगा।
मार्क्स के अनुसार ये दोनों वर्ग मीन्स ऑफ प्रोडक्शन को लेकर आपस में बंटे हुए हैं, मीन्स ऑफ प्रोडक्शन, जमीन, लेबर और पैसे को कहा जाता है। जो वर्ग जमीन, लेबर और पैसे पर नियंत्रण किए हुए है उसे अमीर, सामंत, बुर्जुआ या पूंजीपति वर्ग कहा जाता है, और जिसके पास इनका नियंत्रण नही है, उसे गरीब, किसान, सर्वहारा या श्रमिक वर्ग कहा जाता है, श्रमिक वर्ग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पूंजीपतियों पर डिपेंड करता है, तथा इनके द्वारा चलाए गए कारखानों में काम करता है, बदले में वे उसे पैसा देते हैं।
पूंजीपति लोग ज्यादा लाभ कमाने के लालच में श्रमिकों का शोषण करते हैं, और इन्हें कम से कम सेलरी देना चाहते हैं, जबकि श्रमिक अपनी जरूरत पूरी ना होने के चलते ज्यादा सेलरी की माँग करते हैं, इस वजह से संघर्ष पैदा होता है, क्योंकि एक के फायदे में दूसरे का नुकसान छुपा हुआ है।
मार्क्स कहता है कि यह संघर्ष सदियों से चला आ रहा है, बस शोषक और शोषितों का नाम बदल गया है, इनका नाम पहले सामंत और किसान हुआ करता था, आज ये दोनों वर्ग कारखानों के मालिक और मजदूर हो गए हैं।
मार्क्स इस संघर्ष का अंत भी बताता है, अपनी पुस्तक साम्यवादी घोषणापत्र में वह लिखता है की पूंजीवाद अपनी ही बनाई व्यवस्था का शिकार होकर समाप्त हो जाएगा, क्योंकि इसकी प्रवृति अधिक से अधिक धन कमाने की है, जिससे धन एक तरफ संकुचित होता है, समय के साथ धन कुछ ही पूंजीपतियों तक सीमित होने लगेगा तथा इनकी सँख्या लगातार कम होने लगेगी, तो वहीं प्रोडक्शन बढ़ने से श्रमिकों की सँख्या ज्यादा होने लगेगी, सर्वाधिक अमीर पूंजीपति ज्यादा प्रोडक्शन की खपत के लिए दूसरे देशों और अंततः वे अपनी शक्ति को पहचान कर क्रांति कर देंगे और पूंजीपतियों को उखाड़ फेकेंगे। इस प्रकार केवल श्रमिक वर्ग की शेष रह जाएगा।