ऐसी आर्थिक व्यवस्था जिसमें वस्तुओं के उत्पादन और वितरण पर व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का नियंत्रण होता है, को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहा जाता है। ये व्यक्ति या समूह अपने संचित धन का प्रयोग और अधिक धन संचय के लिए करते हैं। इस प्रकार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दो तत्व हैं निजी पूंजी व निजी लाभ।
यह तंत्र पूर्णतः निजी लाभ के लिए चलाया जाता है जिस कारण इसमें मुक्त बाजार का निर्माण होता है तथा वस्तुओं की मांग और पूर्ति पूरी तरह से बाजार की प्रतिस्पर्धा पर निर्भर करती है। अमेरिका सहित अधिकतर विकसित देश इस अर्थव्यवस्था का अनुसरण करते हैं तथा भारत भी समाजवाद के तत्वों सहित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाए हुए है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के गुणों में बिना सरकारी हस्तक्षेप के व्यवस्था का स्वयं संचालन, आर्थिक स्वतंत्रता, संसाधनों का अनुकूल उपयोग, उत्पादकता में वृद्धि, उत्पादों की गुणवत्ता में वृद्धि, लोगों के जीवन स्तर में सुधार, तकनीकी विकास, बाजार में लचीलापन, पूंजी निर्माण, योग्यतानुसार पुरस्कार, पूंजी निर्माण में प्रोत्साहन, आर्थिक विकास दर में वृद्धि, लोकतंत्र की दृढ़ता में सहयोग इत्यादि शामिल है।
तो वहीं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दोषों में संपत्ति व आय की असमानता, सामाजिक अशांति, वर्ग संघर्ष, एकाधिकारी प्रवृति का उदय, अनियोजित उत्पादन, पूर्ण रोजगार न दे पाने की असफलता, विज्ञापन के कारण उतपत्ति के साधनों का दुरुपयोग, निजी लाभ के कारण सामाजिक कल्याण की अनुपस्थिति, अंसतुलित मांग-पूर्ति के व्यापारिक चक्र, धन का केंद्रीकरण, संपत्ति के उत्तराधिकार के कारण अयोग्य पूंजीवादी वर्ग का उदय इत्यादि शामिल हैं।