राजनीति को लेकर व्यक्ति की आत्म-जागरूकता को ही राजनीतिक चेतना कहा जाता है। यह जान लेना कि अंततः किस प्रकार से राजनीति ही हमारी सभी प्रकार की समस्याओं का कारण है तथा राजनीति को समझ कर व इसकी शक्ति का प्रयोग कर किस प्रकार अपनी समस्याओं को सफलतापूर्वक समाप्त किया जा सकता है यही राजनीतिक चेतना के होने का प्रमाण है।
मार्क्स के अनुसार तो हमारी पूरी चेतना ही राजनीतिक अर्थव्यवस्था का प्रतिबिंब मात्र है तथा एक व्यक्ति के विचार उसकी राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों से आकार लेते हैं। जब किसी समाज में राजनीतिक चेतना नही होती तो उसे झूठी चेतना का शिकार होना पड़ता है जिसका वास्तव में कोई अस्तित्व ही नही होता।
उदाहरणतः समाज की ऊँच-नीच तथा गरीबी-अमीरी को सदियों तक भगवान की देन माना जाता रहा क्योंकि राजनीतिक चेतना के अभाव में लोगों ने उन्हीं विचारधाराओं को सच मान लिया गया जो अभिजात वर्ग व तात्कालीन शासकों ने जनता में प्रचारित करवाए। राजनीतिक चेतना के अभाव में ही अधीनस्थ लोग अपनी अधीनता को स्वीकार किए रहते हैं, उन्हें अपनी वास्तविक ताकत का एहसास ही नही होता। उदाहरणतः राजनीतिक चेतना आने तक भारत ने अंग्रेजों की गुलामी को ही स्वीकार किए रखा।