नारीवादी दृष्टिकोण के मुख्य रूप से दो कोण हैं उदारवादी नारीवाद तथा कट्टरपंथी नारीवाद।
उदारवादी नारीवाद को मुख्यधारा का नारीवाद कहा जाता है। उदारवादी नारीवादियों का मानना है कि सामाजिक संस्थाओं में महिलाओं की आवाज तथा उनकी पहचान का सही मायने में प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता। जिसकी वजह से महिलाओं के प्रति भेदभाव पूर्ण नियम व कानून बनते हैं यही कारण है कि महिलाएं विकास से वंचित रहती है। इसलिए उदारवादी नारीवाद मानता है कि महिलाएं अपनी सोच बदल कर और अलग-अलग क्षेत्रों में अग्रिम भूमिका निभाकर समानता पा सकती हैं। इस प्रकार उदारवादी नारीवाद उदार लोकतंत्र के ढांचे के भीतर राजनीतिक और कानूनी सुधार के मध्यम से लैंगिक समानता को प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर चलता है।
उदारवादी नारीवाद वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में ही महिलाओं के लिए विकास को पाने का समर्थक है। उदारवादी नारीवाद महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिलाने के लिए उन सभी बाधाओं को समाप्त कर देना चाहता है जो सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के कानूनों, राजनीतिक संगठनों, धार्मिक संगठनों, शिक्षा तथा कार्य क्षेत्र में महिलाओं पर थोपी गई हैं। उदारवादी नारीवाद इन्ही बाधाओं को प्राचीन काल से अब तक रही महिलाओं की दयनीय हालत का जिम्मेदार मानता है तथा इस बात में विश्वास रखता है कि इन बाधाओं को दूर करने से समाज में स्त्री व पुरुष समानता को प्राप्त किया जा सकता है।
उदारवादी नारीवाद वर्तमान समय में राज्य और व्यक्ति के बीच शक्ति के बंटवारे का काफी हद तक समर्थक है तथा मौजूदा ढाँचे को ही बदल डालने में विश्वास नही रखता। वह यह नही चाहता कि जिस प्रकार से पुरुष, स्त्री पर सदियों तक हावी रहा है उसी प्रकार अब स्त्री, पुरुष पर हावी रहे, बल्कि वह केंद्रीय सत्ता का पक्षधर है जिसके अंतर्गत वह मानता है कि जितने अधिकार पुरुषों को प्राप्त हैं उतने ही अधिकार स्त्रियों के भी होने चाहिएं। इस प्रकार वह किसी भी एक जेंडर की सत्ता के पक्ष में नही है तथा वें महिलाएं जो मैजूदा सामाजिक ताने-बाने के अंतर्गत रहकर ही समानता व अन्य अधिकारों को पाना चाहती हैं, उदारवादी नारीवाद का समर्थन करती हैं।
अब प्रश्न यह आता है कि उदारवादी नारीवाद राज्य से क्या चाहता है। दरअसल उदारवादी नारीवाद मानता है कि राज्य संसद में महिलाओं के लिए सीटें बढ़ाने, महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार करने जैसे कदम उठाकर पुरुषों तथा महिलाओं के बीच समानता लाने में अपनी भूमिका निभा सकता है। इसीलिए वे देश जहां पर महिलाओं को नौकरी, शिक्षा तथा राजनीतिक क्षेत्र में आरक्षण मिलता है वह राज्य द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की पहल का ही नतीजा है।
उदारवादी नारीवाद महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाने के लिए पुरुषों के सहयोग को भी स्वीकार करता है, प्रगतिशील पुरुष जो महिलाओं की बराबरी के अधिकारों के समर्थक हैं वे भी उदारवादी नारीवाद के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मार्क्सवादी विचारधारा के अनुसार सत्ता को ही पलट देने की सोच रखने की बजाय उदारवादी नारीवाद धीमे विकास व प्रयत्न को मान्यता देता है तथा किसी भी प्रकार की क्रांति का विचार नही रखता, कुल मिलाकर वह मौजूदा व्यवस्था का तो समर्थक है लेकिन इस व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति में लगातार सुधार चाहता है, जब तक कि समाज, राज्य व अन्य किसी भी संस्था की नजर में महिला व पुरुष समान न हो जाएं।
उदारवादी नारीवाद का तर्क है कि समाज महिलाओं को लेकर झूठी धारणाएं रखता है कि महिलाओं की बौद्धिक तथा शारीरिक क्षमता प्राकृतिक रूप से कम होती है यही कारण है कि समाज जब भी कोई संस्था बनाता है, कानून बनाता है या अन्य किसी भी प्रकार की व्यवस्था का निर्माण करता है तो महिलाओं को कम आंकते हुए उनके अधिकार पुरुषों के मुकाबले सीमित कर देता है। भारतीय समाज में यह धारणा की शाम होने से पहले लड़कियों या महिलाओं को घर आ जाना चाहिए इसी प्रकार की एक बंदिश है जो समाज इस आधार पर बनाता है कि महिलाएं शारीरिक व बौद्धिक रूप से कमजोर हैं तथा अपना बचाव कर पाने में असमर्थ हैं।
उदारवादी नारीवाद महिलाओं की अधीनता का कारण उन प्रथाओं तथा कानूनी प्रतिबंधों को मानता है जो महिलाओं को सार्वजनिक दुनिया में जाने से रोकता है। यही कारण है कि पुरुष तथा महिलाओं के सार्वजनिक जीवन में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। जहां महिलाओं को पर्दा प्रथा तथा बुर्का इत्यादि के रूप में सार्वजनिक जीवन में भी बंदिशों का सामना करना पड़ता है वहीं पुरुष इन सब बंधनों से मुक्त है, पुरुष की इस मुक्ति तथा महिलाओं की इस अधीनता की जड़ें उन प्रथाओं तथा कानूनी प्रतिबंधों में छुपी हुई हैं जो सामाजिक संगठनों ने महिलाओं को कमत्तर आंकते हुए बनाई हैं।
उदारवादी नारीवाद व्यक्तिवादी सोच रखता है तथा समाज, राज्य या अन्य संस्था पर केंद्रित होने की बजाए व्यक्ति केंद्रित है, और व्यक्तियों में इसका केंद्र नारी है जिसे वह पुरुष की समान अधिकार दिलाना चाहता है। उदारवादी नारीवाद किसी भी प्रकार की फिलोसॉफी बनाने की बजाए व्यवहारिक रूप से बदलाव लाने का पक्षधर है। यह केवल विचारों में महिलाओं को सम्मान देने की बजाए उन्हें व्यवहारिक रूप से स्वतंत्र करना चाहता है क्योंकि सम्मानीय दर्जे की आड़ में महिलाओं की स्वतंत्रता को सदियों तक छीना जाता रहा है जिससे महिलाओं के शोषण को अदृश्य गति मिलती रही है। भारतीय व्यवस्था के आधार पर देखा जाए तो महिलाओं को देवी के समान माना जाता है लेकिन वहीं जब वो शिक्षा पाने या अन्य अधिकारों की माँग करती है तो व्यवहारिक रूप से उसे उन सब अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इसलिए उदारवादी नारीवाद वैचारिक सम्मान से ज्यादा व्यवहारिक स्वतंत्रता व अधिकारों पर अधिक बल देता है।
उदारवादी नारीवाद की जड़ें हमें क्लासिकल उदारवाद में दिखाई देती हैं, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थक है। 18 वीं सदी के समाज में जहां व्यक्ति आधारित स्वतंत्रता की माँग जोर पकड़ने लगी थी वहीं महिलाओं में भी स्वतंत्रता व अधिकारों की चेतना जागी तथा वे मताधिकार की मांग करने लगी। मताधिकार पाने की माँग का अर्थ ये था कि वे अपने शासक के चुनाव में अपनी भागीदारी चाहती थी ताकि वो शासक महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में भी सोचे, जो प्राचीन काल से पुरुषों की क्रूरता का शिकार होती रही हैं, तथा उन्हें दोयम दर्जे से पूर्ण व्यक्ति का दर्जा मिल सके व समाज के दोनों वर्गों में समानता लाई जा सके। उन्होंने मांग की कि कोई भी सरकारी नियम या सामाजिक प्रथा उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध न लगाए। इन अधिकारों को पाने के लिए महिलाओं का राजनीतिक हस्तक्षेप आवश्यक था इसलिए मताधिकार की माँग उठने लगी। इन्ही माँगो का परिणाम था कि वर्ष 1920 में अमेरिका में महिलाओं को वोट करने का अधिकार दिया गया।
उदारवादी नारीवाद केवल महिलाओं के वोट अधिकार तक ही सीमित नही रहा है, बल्कि इसने जिन उद्देश्यों की प्राप्ति की है उनमें महिलाओं को अपनी इच्छानुसार प्रजनन करने व गर्भपात करवाने का अधिकार भी मिला है। इसके अलावा वे यौन उत्पीड़न के खिलाफ न्यायालय जा सकती हैं, शिक्षा तथा कार्यस्थल पर उन्हें समान दर्जा दिया जाता है। साथ ही राज्य यह भी मानता है कि महिलाओं को बच्चे की देखभाल में सहायता हेतु सस्ती चाइल्डकेयर सुविधा गर्भधारण के बाद खुद की स्वास्थ्य सुविधा मिलनी चाहिए। क्योंकि बच्चे की देखरेख तथा गर्भधारण के दौरान महिलाओं स्वास्थ्य की देखभाल में उचित सहायता व मार्गदर्शन भी एक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है, इसलिए आज हम सरकारी अस्पतालों में शिशुओं को लेकर दी जाने वाली विशेष फ्री सुविधाओं को देखते हैं। इन सब उद्देश्यों की प्राप्ति में उदारवादी नारीवाद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
हालांकि यह सब कुछ जानने के बाद हमें प्रतीत होता है कि उदारवादी नारीवाद में कोई बुराई नही है लेकिन इसकी आलोचना करने वाले कुछ तर्क देते हैं, इसमें सबसे पहला तर्क यह है कि, हालांकि उदारवादी नारीवाद महिलाओं को व्यक्तिगत तौर पर पुरुषों से स्वतंत्र कर देगा लेकिन राज्य की सत्ता पितृसत्तात्मक है तथा उदारवादी नारीवाद जिस तरह से इसी तंत्र में रहकर समानता पाना चाहता है उसे वह प्राप्त नही कर सकता इसलिए पितृसत्तात्मक राज्य पर चोट करने के लिए तथा उसे बदलने के लिए नारीवाद को और अधिक कड़ा रुख अपनाने होगा, क्योंकि एक पितृसत्तामक राज्य कभी भी समाज की पितृसत्तामक सत्ता को समाप्त नही कर सकता।
आलोचक आगे कहते हैं कि उदारवादी नारीवाद जो कुछ महिलाओं के लिए कर रहा है वो देखने में बहुत कुछ लग सकता है लेकिन यह अपनी चरम स्थिति तक भी पर्याप्त नही होगा। इसलिए कुछ सुधारों की आस में जीने की बजाय पूरी व्यवस्था को बदल कर महिलाएं वास्तविक रूप में अपनी स्थिति को पुरुषों की तरह मजबूत कर सकती हैं। साथ ही उदारवादी नारीवाद कुछ समुदायों की महिलाओं के लिए तो पर्याप्त है लेकिन अलग-अलग संस्कृतियों में जो महिलाओं की दशा है उसे अनदेखा करता है। क्योंकि जिस प्रकार इसने सफेद महिलाओं के लिए काम किया है आवश्यक नही है कि यह अन्य नस्लों के महिलाओं के लिए भी उतने ही प्रभावी ढंग से काम करेगा क्योंकि अन्य नस्लों की संस्कृतियां बहुत हद तक सफेद नस्ल से भिन्न हैं।
उदारवादी नारीवाद को मुख्यधारा का नारीवाद कहा जाता है। उदारवादी नारीवादियों का मानना है कि सामाजिक संस्थाओं में महिलाओं की आवाज तथा उनकी पहचान का सही मायने में प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता। जिसकी वजह से महिलाओं के प्रति भेदभाव पूर्ण नियम व कानून बनते हैं यही कारण है कि महिलाएं विकास से वंचित रहती है। इसलिए उदारवादी नारीवाद मानता है कि महिलाएं अपनी सोच बदल कर और अलग-अलग क्षेत्रों में अग्रिम भूमिका निभाकर समानता पा सकती हैं। इस प्रकार उदारवादी नारीवाद उदार लोकतंत्र के ढांचे के भीतर राजनीतिक और कानूनी सुधार के मध्यम से लैंगिक समानता को प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर चलता है।
उदारवादी नारीवाद वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में ही महिलाओं के लिए विकास को पाने का समर्थक है। उदारवादी नारीवाद महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिलाने के लिए उन सभी बाधाओं को समाप्त कर देना चाहता है जो सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के कानूनों, राजनीतिक संगठनों, धार्मिक संगठनों, शिक्षा तथा कार्य क्षेत्र में महिलाओं पर थोपी गई हैं। उदारवादी नारीवाद इन्ही बाधाओं को प्राचीन काल से अब तक रही महिलाओं की दयनीय हालत का जिम्मेदार मानता है तथा इस बात में विश्वास रखता है कि इन बाधाओं को दूर करने से समाज में स्त्री व पुरुष समानता को प्राप्त किया जा सकता है।
उदारवादी नारीवाद वर्तमान समय में राज्य और व्यक्ति के बीच शक्ति के बंटवारे का काफी हद तक समर्थक है तथा मौजूदा ढाँचे को ही बदल डालने में विश्वास नही रखता। वह यह नही चाहता कि जिस प्रकार से पुरुष, स्त्री पर सदियों तक हावी रहा है उसी प्रकार अब स्त्री, पुरुष पर हावी रहे, बल्कि वह केंद्रीय सत्ता का पक्षधर है जिसके अंतर्गत वह मानता है कि जितने अधिकार पुरुषों को प्राप्त हैं उतने ही अधिकार स्त्रियों के भी होने चाहिएं। इस प्रकार वह किसी भी एक जेंडर की सत्ता के पक्ष में नही है तथा वें महिलाएं जो मैजूदा सामाजिक ताने-बाने के अंतर्गत रहकर ही समानता व अन्य अधिकारों को पाना चाहती हैं, उदारवादी नारीवाद का समर्थन करती हैं।
अब प्रश्न यह आता है कि उदारवादी नारीवाद राज्य से क्या चाहता है। दरअसल उदारवादी नारीवाद मानता है कि राज्य संसद में महिलाओं के लिए सीटें बढ़ाने, महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार करने जैसे कदम उठाकर पुरुषों तथा महिलाओं के बीच समानता लाने में अपनी भूमिका निभा सकता है। इसीलिए वे देश जहां पर महिलाओं को नौकरी, शिक्षा तथा राजनीतिक क्षेत्र में आरक्षण मिलता है वह राज्य द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की पहल का ही नतीजा है।
उदारवादी नारीवाद महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाने के लिए पुरुषों के सहयोग को भी स्वीकार करता है, प्रगतिशील पुरुष जो महिलाओं की बराबरी के अधिकारों के समर्थक हैं वे भी उदारवादी नारीवाद के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मार्क्सवादी विचारधारा के अनुसार सत्ता को ही पलट देने की सोच रखने की बजाय उदारवादी नारीवाद धीमे विकास व प्रयत्न को मान्यता देता है तथा किसी भी प्रकार की क्रांति का विचार नही रखता, कुल मिलाकर वह मौजूदा व्यवस्था का तो समर्थक है लेकिन इस व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति में लगातार सुधार चाहता है, जब तक कि समाज, राज्य व अन्य किसी भी संस्था की नजर में महिला व पुरुष समान न हो जाएं।
उदारवादी नारीवाद का तर्क है कि समाज महिलाओं को लेकर झूठी धारणाएं रखता है कि महिलाओं की बौद्धिक तथा शारीरिक क्षमता प्राकृतिक रूप से कम होती है यही कारण है कि समाज जब भी कोई संस्था बनाता है, कानून बनाता है या अन्य किसी भी प्रकार की व्यवस्था का निर्माण करता है तो महिलाओं को कम आंकते हुए उनके अधिकार पुरुषों के मुकाबले सीमित कर देता है। भारतीय समाज में यह धारणा की शाम होने से पहले लड़कियों या महिलाओं को घर आ जाना चाहिए इसी प्रकार की एक बंदिश है जो समाज इस आधार पर बनाता है कि महिलाएं शारीरिक व बौद्धिक रूप से कमजोर हैं तथा अपना बचाव कर पाने में असमर्थ हैं।
उदारवादी नारीवाद महिलाओं की अधीनता का कारण उन प्रथाओं तथा कानूनी प्रतिबंधों को मानता है जो महिलाओं को सार्वजनिक दुनिया में जाने से रोकता है। यही कारण है कि पुरुष तथा महिलाओं के सार्वजनिक जीवन में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। जहां महिलाओं को पर्दा प्रथा तथा बुर्का इत्यादि के रूप में सार्वजनिक जीवन में भी बंदिशों का सामना करना पड़ता है वहीं पुरुष इन सब बंधनों से मुक्त है, पुरुष की इस मुक्ति तथा महिलाओं की इस अधीनता की जड़ें उन प्रथाओं तथा कानूनी प्रतिबंधों में छुपी हुई हैं जो सामाजिक संगठनों ने महिलाओं को कमत्तर आंकते हुए बनाई हैं।
उदारवादी नारीवाद व्यक्तिवादी सोच रखता है तथा समाज, राज्य या अन्य संस्था पर केंद्रित होने की बजाए व्यक्ति केंद्रित है, और व्यक्तियों में इसका केंद्र नारी है जिसे वह पुरुष की समान अधिकार दिलाना चाहता है। उदारवादी नारीवाद किसी भी प्रकार की फिलोसॉफी बनाने की बजाए व्यवहारिक रूप से बदलाव लाने का पक्षधर है। यह केवल विचारों में महिलाओं को सम्मान देने की बजाए उन्हें व्यवहारिक रूप से स्वतंत्र करना चाहता है क्योंकि सम्मानीय दर्जे की आड़ में महिलाओं की स्वतंत्रता को सदियों तक छीना जाता रहा है जिससे महिलाओं के शोषण को अदृश्य गति मिलती रही है। भारतीय व्यवस्था के आधार पर देखा जाए तो महिलाओं को देवी के समान माना जाता है लेकिन वहीं जब वो शिक्षा पाने या अन्य अधिकारों की माँग करती है तो व्यवहारिक रूप से उसे उन सब अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इसलिए उदारवादी नारीवाद वैचारिक सम्मान से ज्यादा व्यवहारिक स्वतंत्रता व अधिकारों पर अधिक बल देता है।
उदारवादी नारीवाद की जड़ें हमें क्लासिकल उदारवाद में दिखाई देती हैं, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थक है। 18 वीं सदी के समाज में जहां व्यक्ति आधारित स्वतंत्रता की माँग जोर पकड़ने लगी थी वहीं महिलाओं में भी स्वतंत्रता व अधिकारों की चेतना जागी तथा वे मताधिकार की मांग करने लगी। मताधिकार पाने की माँग का अर्थ ये था कि वे अपने शासक के चुनाव में अपनी भागीदारी चाहती थी ताकि वो शासक महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में भी सोचे, जो प्राचीन काल से पुरुषों की क्रूरता का शिकार होती रही हैं, तथा उन्हें दोयम दर्जे से पूर्ण व्यक्ति का दर्जा मिल सके व समाज के दोनों वर्गों में समानता लाई जा सके। उन्होंने मांग की कि कोई भी सरकारी नियम या सामाजिक प्रथा उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध न लगाए। इन अधिकारों को पाने के लिए महिलाओं का राजनीतिक हस्तक्षेप आवश्यक था इसलिए मताधिकार की माँग उठने लगी। इन्ही माँगो का परिणाम था कि वर्ष 1920 में अमेरिका में महिलाओं को वोट करने का अधिकार दिया गया।
उदारवादी नारीवाद केवल महिलाओं के वोट अधिकार तक ही सीमित नही रहा है, बल्कि इसने जिन उद्देश्यों की प्राप्ति की है उनमें महिलाओं को अपनी इच्छानुसार प्रजनन करने व गर्भपात करवाने का अधिकार भी मिला है। इसके अलावा वे यौन उत्पीड़न के खिलाफ न्यायालय जा सकती हैं, शिक्षा तथा कार्यस्थल पर उन्हें समान दर्जा दिया जाता है। साथ ही राज्य यह भी मानता है कि महिलाओं को बच्चे की देखभाल में सहायता हेतु सस्ती चाइल्डकेयर सुविधा गर्भधारण के बाद खुद की स्वास्थ्य सुविधा मिलनी चाहिए। क्योंकि बच्चे की देखरेख तथा गर्भधारण के दौरान महिलाओं स्वास्थ्य की देखभाल में उचित सहायता व मार्गदर्शन भी एक कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है, इसलिए आज हम सरकारी अस्पतालों में शिशुओं को लेकर दी जाने वाली विशेष फ्री सुविधाओं को देखते हैं। इन सब उद्देश्यों की प्राप्ति में उदारवादी नारीवाद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
हालांकि यह सब कुछ जानने के बाद हमें प्रतीत होता है कि उदारवादी नारीवाद में कोई बुराई नही है लेकिन इसकी आलोचना करने वाले कुछ तर्क देते हैं, इसमें सबसे पहला तर्क यह है कि, हालांकि उदारवादी नारीवाद महिलाओं को व्यक्तिगत तौर पर पुरुषों से स्वतंत्र कर देगा लेकिन राज्य की सत्ता पितृसत्तात्मक है तथा उदारवादी नारीवाद जिस तरह से इसी तंत्र में रहकर समानता पाना चाहता है उसे वह प्राप्त नही कर सकता इसलिए पितृसत्तात्मक राज्य पर चोट करने के लिए तथा उसे बदलने के लिए नारीवाद को और अधिक कड़ा रुख अपनाने होगा, क्योंकि एक पितृसत्तामक राज्य कभी भी समाज की पितृसत्तामक सत्ता को समाप्त नही कर सकता।
आलोचक आगे कहते हैं कि उदारवादी नारीवाद जो कुछ महिलाओं के लिए कर रहा है वो देखने में बहुत कुछ लग सकता है लेकिन यह अपनी चरम स्थिति तक भी पर्याप्त नही होगा। इसलिए कुछ सुधारों की आस में जीने की बजाय पूरी व्यवस्था को बदल कर महिलाएं वास्तविक रूप में अपनी स्थिति को पुरुषों की तरह मजबूत कर सकती हैं। साथ ही उदारवादी नारीवाद कुछ समुदायों की महिलाओं के लिए तो पर्याप्त है लेकिन अलग-अलग संस्कृतियों में जो महिलाओं की दशा है उसे अनदेखा करता है। क्योंकि जिस प्रकार इसने सफेद महिलाओं के लिए काम किया है आवश्यक नही है कि यह अन्य नस्लों के महिलाओं के लिए भी उतने ही प्रभावी ढंग से काम करेगा क्योंकि अन्य नस्लों की संस्कृतियां बहुत हद तक सफेद नस्ल से भिन्न हैं।
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