भारत में कुटुंब यानी परिवार से संबंधित विवाद सुलझाने के लिए सिविल न्यायालयों से अलग न्यायालयों की जिला स्तर पर स्थापना की गई है जिन्हें कुटुंब न्यायालय कहा जाता है कुटुंब न्यायालय को अंग्रेजी में Family Court कहा जाता है इनकी स्थापना कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1984 के अंतर्गत की गई है मौजूदा समय में 10 लाख से अधिक आबादी वाले सभी क्षेत्रों में कुटुंब न्यायालय विद्यमान हैं इनके न्यायाधीश जिला न्यायाधीशों के समान शक्तियां रखते हैं, तथा सामाजिक ताने बाने का अनुभव रखते हुए परिवारों के विवादों को सुलझाते हैं कुटुंब न्यायालयों में वकीलों की मनाही होती है, हालांकि पारिवारिक मित्र के रूप में वकील सहायता कर सकता है कुटुंब न्यायालयों में भारतीय साक्ष्य कानून लागू नही होता, तथा गवाहों के बयानों को ज्यों का त्यों नही लिखा जाता, पूर्ण बयान से जो निष्कर्ष निकलता है उसे लिखा जाता है कुटुंब न्यायालयों की फीस नाममात्र की होती है, इसका वास्तविक उद्देश्य किसी को गलत सही साबित करना नही बल्कि परिवार में समझौता करवाना होता है कुटुंब न्यायालय के अंतर्गत आने वाले मामले हैं - तलाक से संबंधित मामले, दांपत्य